श्री क्षेत्र कणुर (सातारा-महाराष्ट्र) के मठ पर छोटे स्वरूप में जाहिर ‘हिन्दू धर्मजागृति सभा’
सातारा (महाराष्ट्र) : पाश्चिमात्त्योंके अंधानुकरण से पुरे विश्व में सर्वश्रेष्ठ रही ‘महान भारतीय संस्कृति’ आज नष्ट हो रही है ! युवक भी भारी मात्रा में व्यसनाधीन हो कर केवल भौतिक सुखोंके पीछे पडे हैं। इस लिये, हिन्दुओं में पुन:श्च ‘धर्मतेज’ जागृत करने हेतु ‘धर्मशिक्षा’ की अत्यंत आवश्यकता है; ऐसा, श्री क्षेत्र कणुर के मठाधिपति पू. ब्रह्मानंद स्वामी ने प्रतिपादित किया।
श्रीक्षेत्र कणुर के मठ पर छोटे स्वरूप में जाहिर ‘हिन्दू धर्मजागृति सभा’ का आयोजन किया गया था। इस अवसर पर वे बोल रहे थे।
इस समय व्यासपीठ पर सनातन संस्था की श्रीमती स्मिता भोज एवं हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. राहुल कोल्हापुरे उपस्थित थे।
सभा में श्री क्षेत्र कणुर एवं पंचक्रोशी के ३५० से अधिक भक्त उपस्थित थे। श्री. कोल्हापुरेद्वारा पू. ब्रह्मानंद स्वामीजी का सम्मान किया गया।
हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. राहुल कोल्हापुरे एवं सनातन संस्था की श्रीमती स्मिता भोज ने भी उपस्थित भक्तों एवं धर्माभिमानीयोंको मार्गदर्शन किया।
पू. ब्रह्मानंद स्वामी ने आगे कहा कि…
१. हिन्दुओंके अंतःकरण में स्वभाषाभिमान, स्वराष्ट्राभिमान एवं स्वधर्माभिमान नहीं रहा है। इसलिए आज उनकी स्थिति दयनीय है। विद्यालयीन शिक्षा में संस्कृत को सम्मिलित करने की बात कही गई, तो ‘तथाकथित’ शिक्षाप्रेमी ऐसा शोर मचाते है कि, शिक्षा का भगवाकरण चल रहा हों !
२. पूर्व में, भारत में गुरुकुलपद्धति विद्यमान थी। सर्वगुणसंपन्न एवं शुद्ध धर्माचरणी युवक गुरुकुल में सिद्ध होते थे। मेकाले ने गुरुकुलपद्धति को तोड मरोड़ कर हिन्दुओंकी धर्मशिक्षा पर ही बड़ा आघात किया ! उसने भारतीय शिक्षापद्धति की ‘ऐसी’ व्यवस्था कर रखी कि उससे केवल सिर्फ ‘कारकून’ ही सिद्ध हों !
३. हिन्दुओंको पुनः स्वधर्म की रुढियां, प्रथा एवं परंपराओंके पीछे का शास्त्र जान कर धर्माचरण करना अत्यावश्यक है। यदि हम धर्माचरण करते रहें, तो हमें किसी का भय नहीं रहेगा ! पुरुषोंको माथे पर ‘तिलक’ एवं महिलाओंने स्पष्ट रूप से ‘कुमकुम’ लगा कर ही घर के बाहर निकलना चाहिए; क्योंकि धर्माचरणी हिन्दू ही भारत के खरे भाग्यविधाता हैं !
क्षणिका : धर्मजागृति सभा का पूरा नियोजन पू. ब्रह्मानंद स्वामी एवं उनके शिष्योंद्वारा किया गया था।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात