अधिवक्ता असीम सरोदेद्वारा हिन्दू जनजागृति समितिके कार्यकर्तापर धौंस !

भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी, कलियुग वर्ष ५११६

  • यदि कानूनके रक्षक कहलानेवाले अधिवक्ता ही सडकके गुण्डोंके समान धौंस जमाते हैं, तो यह देशकी संभावित अराजकताका ही लक्षण है !
  • गणेशमूर्तिका विसर्जन बहते पानीमें करनेके सन्दर्भमें प्रबोधन करनेका विरोध

पुणे (महाराष्ट्र) – कथित पर्यावरणवादी अधिवक्ताने श्री गणेशमूर्तिका विसर्जन बहते पानीमें करनेके सन्दर्भमें हिन्दुओंका प्रबोधन करनेवाले हिन्दू जनजागृति समितिके कार्यकर्ताओंपर दौडकर जानेका अश्लाघ्य आरोप लगाया । उस समय कथित पर्यावरणवादी अधिवक्ताने कार्यकर्ताको अकेला पाकर उसपर धौंस जमाई । इसमें अधिवक्ता असीम सरोदे भी समाविष्ट थे । उन्होंने उनपर धौंस जमाते हुए यह वक्तव्य दिया कि उनकी प्रतिक्रिया प्राप्त करें, तदनन्तर इनके प्रत्येक व्यक्तिके विरोधमें याचिका प्रविष्ट करता हूं । (कानूनके रक्षक कहलानेवाले अधिवक्ता ही यदि इस प्रकारकी गुण्डागर्दी करेंगे, तो क्या देशमें किसीको न्याय प्राप्त हो सकेगा ? सरोदेको यह बात ध्यानमें रखनी चाहिए कि ईश्वरीय सहयोगके कारण ही कार्य करनेवाली हिन्दू जनजागृति समिति इस झुण्डशाहीकी ओर कभी भी ध्यान नहीं देगी ! – सम्पादक, दैनिक सनातन प्रभात ) इस सन्दर्भमें हिन्दू जनजागृति समिति अधिवक्ताओंके सुझाव प्राप्त कर उचित कानूनी कार्रवाई करेगी ।

१. दोपहर ४ बजे हिन्दू जनजागृति समितिके श्री. केतन पाटिल तथा श्री. अनिकेत भोळे ओंकारेश्वर बांधपर श्रद्धालुओंका प्रबोधन कर रहे थे ।

२. वहां उपस्थित एक व्यक्तिको श्री. पाटिलने यह विनती की कि वे शास्त्रके अनुसार बहते पानीमें मूर्तिविसर्जन करें । इसपर वह व्यक्ति भी सिद्ध हो गया ।

३. उनके समवेत नदीतक जाते समय बीचमें ही कथित पर्यावरणवादी अधिवक्ताने श्री. पाटिलको रोक लिया ।

४. इसमें अधिवक्ता असीम सरोदे, अधिवक्ता विकास शिंदे, अंनिसके प्रा. ललवाणी तथा अन्य कार्यकर्ता हुए थे ।

५. वे श्री. पाटिलपर चिल्लाकर बोलने लगे कि आप लोगोंको न फंसाए । (समितिके कार्यकर्ता किसीको भी फंसा नहीं रहे थे, वे तो धर्मशास्त्र बता रहे थे ! – सम्पादक, दैनिक सनातन प्रभात) गणेशदेवताको जलदेवतामें विसर्जन करना उचित नहीं । (किसी आधुनिक वैद्यने यदि कानूनी समादेश(सुझाव)दिया, तो क्या सरोदे वह स्वीकार करेंगे ? तदनुसार धर्मशास्त्रके संदर्भमें जानकारी न होते हुए भी उसे बतानेवालोंको ही इस प्रकारसे धमकाना क्या उचित बात है ? यदि सरोदेको प्रदूषणका इतना क्रोध है, तो उन्हें प्रथम नदीमें सहस्रो लिटर रासायनिक गंदा पानी छोडनेवाले कार्यशालाओंके विरोधमें कार्रवाई करनेका साहस करना चाहिए ! किसी भी अभ्यासके बिना इस प्रकारके वक्तव्य देनेवाले अधिवक्ता समाजका दिशाभ्रम ही कर रहे हैं ! – सम्पादक, दैनिक सनातन प्रभात) आप किसके कहनेपर इस स्थानपर यह बतानेके लिए आए हैं, उन्हें यहां भेजें । हम उनके साथ विचारविमर्श करेंगे । (धर्मशास्त्र किसे कहते हैं, इससे भी अनजान सरोदे कहते हैं कि विचारविमर्श करेंगे ? – सम्पादक, दैनिक सनातन प्रभात)

६. उस समय श्री. पाटिल उन्हें शांतिसे धर्मशास्त्र बतानेका प्रयास कर रहे थे; किंतु वे सुननेकी अपेक्षा कार्यकर्ताओंके पास दौडकर गए । पर्यावरणवादियोंने समितिके कार्यकर्ताओंको घेर लिया था । (इस गुण्डागिरीके संदर्भमें सरोदे तथा उनके सहकारियोंको कानूनी कार्रवाईका सामना करनेकी सिद्धता रखनी चाहिए ! – सम्पादक, दैनिक सनातन प्रभात)

७. यह देखकर उस स्थानपर प्रसारप्रणालोंके प्रतिनिधि आ गए ।

८. सरोदेने उनके पास प्रतिक्रिया व्यक्त की । तत्पश्चात प्रणाल जब श्री. पाटिलकी प्रतिक्रिया प्राप्त कर रहे थे, उस समय सरोदेका क्रोध अनावर हुआ । वे कहने लगे कि लीजिए, लीजिए ! उनकी भी प्रतिक्रिया प्राप्त करें, तदनंतर मैं उस चित्रीकरणके आधारपर तुमपर याचिका प्रविष्ट करूंगा ! (धर्मशास्त्र बतानेके लिए किसकी पाबंदी हो सकती है ? सरोदे इस बातको अनुचित ढंग से न समझें कि केवल अधिवक्ताओंको ही कानूनके सन्दर्भमें ज्ञान है, ! – सम्पादक, दैनिक सनातन प्रभात)

९. सनातन प्रभातके प्रतिनिधियोंपर भी सरोदे क्रोधित हुए । उन्होंने बताया कि आप लोगोंको हौदमें मूर्तिविसर्जन करनेके लिए बताईए ।

१०. उस समय सरोदेने कार्यकर्ताओंको बताया कि यदि लोगोंके पैर छूने पडें, तो भी चलेगा; किंतु नदीमें मूर्तिविसर्जन करने नहीं देना है । (सरोदेको निश्चित शास्त्र क्या है, इसका पता न होनेके कारण ही इस प्रकारकी याचना करनेका समय आया है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात) 

स्त्राेत: दैनिक सनातन प्रभात

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