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‘ …उस दिन हमारे घर से एक साथ, मां-पिता की दो अर्थियां निकाली गई’ – श्रीमती अर्चना काक, एक कश्मिरी विस्थापित

भुवनेश्वर (ओडिशा) की विस्थापित काश्मिरी हिन्दु श्रीमती अर्चना काकद्वारा व्यक्त किया गया हृदयद्रावक मनोगत

श्रीमती अर्चना काक
श्रीमती अर्चना काक

भुवनेश्वर (ओडिशा) : यहां ९ अगस्त के दिन ‘एक भारत अभियान – कश्मीर की ओर’ के अंतर्गत भारत रक्षा मंच, हिन्दू जनजागृति समिति तथा पनून कश्मीर के संयुक्त तत्वावधान में जाहीर सभा आयोजित की गई थी । इस में विस्थापित हिन्दु श्रीमती अर्चना काक ने अपना हृदयद्रावक मनोगत व्यक्त किया । उनका मनोगत सुनते समय पूरा सभागृह सुन्न सा हो गया था । मनोगत समाप्त होने के पश्चात अनेकों के आंखों से आंसू बह रहे थे ।

आज काश्मिरी हिन्दुओं के पुनर्वसन की सभा आयोजित की गई है, ऐसा एक भित्तीपत्रक पर पढने के पश्चात मुझ से रहा नहीं गया । और मैं इस सभा में उपस्थित रही । मनोगत वक्त करते समय मेरी आंखों से आंसू आएंगे, तो मुझे समझकर लेना….

मेरे पिता जम्मू-कश्मीर के पुलिस विभाग में एक प्रामाणिक एवं देशभक्त अधिकारी के रूप में पहचाने जाते थे । उन्हें लगातार धर्मांध जिहादी मुसलमानोंद्वारा धमकियां दी जाती थी; किंतु वे कभी भयभीत नहीं हुए । उन्होंने निरंतर पुलिससेवा में देशसेवा ही की । शायद यही उनका अपराध था; इसलिए एक दिन दोपहर के समय कुछ पुलिस अधिकारी तिरंगे में उनका देह लपेटकर घर आए।

उस समय मैं केवल ७ वर्ष की थी, तो मेरा भाई ५ वर्ष का था । यह क्या हो रहा है, इस का पता ही नहीं चला; किंतु वह दिन आज भी हमारे स्मरण में है । मेरी अत्यंत धार्मिक वृत्तीवाली मां यह दृश्य देख नहीं सकी । उस पतिव्रता को यह धक्का सहन नहीं हुआ । उसी समय उसने अपने प्राण त्याग दिए । उस दिन हमारे घर से माता-पिता की दो अर्थियां एक साथ निकाली गई । एक पल में हम दोनों निराधार हुए । हमारा सारा बचपन ही खो गया !

पिताजी पुलिस विभाग में होने के कारण हमारे परिवार के लोग तथा पडोसी हिन्दुओंने भी अपने ऊपर आनेवाली आपत्ति को पहचानकर हमारा दायित्व अस्वीकार किया । उनके मन में यही भय था कि, पुलिस के अपत्यों का पालन पोषण करने पर धर्मांध जिहादी लक्ष्य करेंगे । हमारी स्थिती अत्यंत दयनीय हुई । हर दिन विभिन्न घरों में जाकर भोजन कर हम अपना गुजारा कर रहे थे तथा अपनी पढाई पूर्ण कर रहे थे ।

एक बार सडक पर २ युवक मेरे बाजू में आके खडे हो गये । उन्होंने उनके पास छुपाया हुआ शस्त्र मुझे दिखाकर कहां कि, ‘एक तो मुसलमान हो जाओ अन्यथा काश्मीर छोडकर निकल जाओ !’ मेरे मुंह से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था । मैं बहुत डर गई थी । उस प्रसंग के पश्चात हमने सदैव के लिए काश्मीर छोड दिया तथा जम्मू में एक दूर के रिश्तेदार के यहां आश्रय हेतु आए । पश्चात हम उच्च शिक्षा हेतु दिल्ली में आए । आज कुछ स्थिर होकर यहां (ओडिशा में) निवास कर रहे हैं ।

मेरे घर में जो कुछ हुआ, वह अनेक घरों में उस समय हुआ था ! अनेक लोगों का जीवन उद्ध्वस्त हुआ । काश्मिरी हिन्दु महिलाओं पर अत्याचार किए गए । कभी भी किसी पर ऐसा समय न आएं, ऐसा समय कश्मिरी हिन्दुओं पर आया था । भविष्य में ऐसा किसी के संदर्भ में भी न घटें, इसलिए ‘एक भारत अभियान ….’ में, मैं अपना समय देने के लिए सिद्ध हूं !

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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