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‘सनबर्न फेस्टिवल’ : कुछ अनुत्तरित प्रश्‍न !

अंततः केसनंद (पुणे) में १ करोड ४ लाख रुपए दंड भरने की बदनामी के साथ विवादग्रस्त एवं कुविख्यात ‘सनबर्न फेस्टिवल’ संपन्न हुआ । आरंभ से ही संस्कृतिप्रेमी, हिन्दुत्वनिष्ठ तथा स्थानीय ग्रामवासियों ने इस कार्यक्रम का तीव्र विरोध दर्शाया था । संगठित रूप से दर्शाए गए विरोध के कारण पिछले ९ वर्षोंं से ‘सनबर्न’ के ऐसे अनेक प्रकरण लोगों तक पहुंचे, जिनसे लोग अज्ञात थे । मादक पदार्थों का मुक्त उपयोग, मद्य का विपुल सेवन ‘सनबर्न’ का ऐसा इतिहास सब तक पहुंच गया । ऐसे ‘सनबर्न’ के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा ही अनुमति देने के कारण आयोजकों में हाथी का बल उत्पन्न हो गया था । इसीलिए सनबर्न के आयोजकों द्वारा बिना किसी भय पहाड का समतलीकरण, वृक्षतोड तथा हवाईअड्डा परिसर में तीव्र किरणों का उपयोग करने जैसी गंभीर घटनाएं की गर्इं । सरकारी समर्थन के कारण अंतिम क्षण तक अनेक विषयों में अनुमति प्रलंबित होते हुए भी इस कार्यक्रम के लिए करोडों रुपए का निवेश किया गया । यद्यपि यह कार्यक्रम संपन्न हुआ है, तब भी इस कार्यक्रम के उपलक्ष्य में सर्वसाधारण लोगों के समक्ष कुछ प्रश्‍न उपस्थित हुए हैं, जो निश्चित ही अनुत्तरित रह गए । कदाचित् इन अनुत्तरित प्रश्‍नों को ‘मूकसम्मति’ यही उत्तर होना चाहिए ।

१. नियमों का उल्लंघन करनेवाले ‘सनबर्न’ की ओर सरकार ने अनदेखी क्यों की है ?

‘सनबर्न फेस्टिवल’ के आयोजकों द्वारा बिना पूर्व अनुमति के पहाड का समतलीकरण एवं वृक्षतोड करना आदि अनाचार किए गए थे । वनविभाग द्वारा इस प्रकरण में कार्यक्रमस्थल से दो पोक्लेन यंत्र (भूमि की खुदाई करनेवाला यंत्र) भी नियंत्रण में लिए गए थे । कुछ समाचार पत्रों में उस स्थान पर की जानेवाली वृक्षतोड के संदर्भ में छायाचित्र भी प्रसिद्ध किए गए थे । सच देखा जाय तो, ‘वृक्षतोड करना’ अपराध होते हुए भी कार्यक्रमस्थल पर हुई वृक्षतोड की ओर सरकार द्वारा अनदेखी की गई ।

२. अनाचारों पर ध्यान रखने के लिए सरकारी तंंत्र का उपयोग क्यों नहीं ?

‘सनबर्न फेस्टिवल’ में चलनेवाला मादक पदार्थों का व्यवसाय, गोवा में मादक पदार्थविरोधी दल द्वारा कार्यक्रम में मारा गया छापा, मादक पदार्थों के अतिसेवन के कारण एक युवती की मृत्यु आदि सूत्र हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों द्वारा उपस्थित किए गए थे । इस संदर्भ में भाजपा के नेताओं द्वारा प्रत्युत्तर में कहा जा रहा था कि, मादक पदार्थों का सेवन अथवा कोई भी अवैधानिक कृत्य दिखाई देने पर सरकार किसी की भी परवाह नहीं करेगी एवं ऐसे लोगों पर वैधानिक कार्यवाही की जाएगी । परंतु प्रत्यक्ष में ‘कार्यक्रमस्थल पर अनाचार तो नहीं हो रहे ?’, इसकी जांच करने हेतु सरकार द्वारा कोई शासनयंत्र का प्रबंध नहीं किया गया था । यदि सरकारी प्रबंध होता, तो कार्यक्रमस्थल के पास अल्पायु बच्चों द्वारा होेनेवाला सिगारेट का विक्रय सरकार को दिखाई दिया होता एवं उस पर प्रतिबंध लगाया गया होता । एक ओर ‘कानुन विरोधी कृत्य नहीं होने देंगे’, ऐसा कहना एवं दूसरी ओर कानूनद्रोह के पूर्वइतिहास से भरपूर ‘सनबर्न’ पर ध्यान रखने हेतु प्रबंध न करने का अर्थ सर्वसाधारण लोग क्या समझे ?

३. डीजे का ध्वनिस्तर नापने की ओर अनदेखी क्यों ?

कार्यक्रमस्थल पर चलनेवाली ‘डीजे’ की कर्णकर्कश आवाज केसनंद गांव में भी सुनाई दे रही थी । इस आवाज से पीडित होकर अनेक स्थानीय नागरिकों ने पुलिस के पास परिवाद प्रविष्ट किए थे । कार्यक्रमस्थल पर जाकर ध्वनि की तीव्रता को नापने की मांग लिखित रूप में की गई थी; परंतु इन सभी परिवादों को अनदेखा किया गया । नागरिकों द्वारा ध्वनिप्रदूषण के संदर्भ में न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश का उल्लंघन ध्यान में लाकर देने पर भी उसे न रोकना न्यायालय का अपमान ही कहलाएगा ।

४. कार्यक्रम के लिए रात्रि १० बजने के उपरांत भी अनुमति क्यों ?

आयोजकों द्वारा आश्वासन दिया गया था कि, ‘सनबर्न फेस्टिवल’ रात्रि ९ बज कर ५५ मिनट पर बंद किया जाएगा; परंतु वह केवल समय काटने के लिए ही था; क्योंकि रात्रि १० बजने के उपरांत भी कार्यक्रम निस्संकोच रूप से चल रहे थे । इस संदर्भ में स्थानीय जागृत नागरिकों द्वारा पुलिस को भान कराने पर भी उस पर ध्यान नहीं दिया गया । वैसे देखा जाय तो गणेशोत्सव की कालावधि में अथवा दहीहंडी उत्सव के अवसर पर रात्रि १० बजने के पश्चात कार्यक्रम करनेवाले मंडलों पर कार्यवाही करनेवाली पुलिस ‘सनबर्न’ के संदर्भ में मात्र मौन दिखाई दी ।

५. सार्वजनिक स्थल पर होनेवाले धूम्रपान एवं मद्यपान को क्यों नहीं रोका गया ?

सार्वजनिक स्थल पर धूम्रपान तथा मद्यपान करना वैधानिक रूप से प्रतिबंधित है । ‘सनबर्न’ के लिए आए युवक एवं युवतियां बिना किसी की भी परवाह गांव में आकर धूम्रपान एवं मद्यपान कर रहे थे । कार्यक्रम के लिए नियुक्त पुलिस के सामने ही यह सब होते हुए भी पुलिस द्वारा इन धनवानों पर ना तो कोई कार्यवाही की गई और ना ही उन्हें टोका गया ! जिन पर कानून का राज्य देने का दायित्व है, वे ही कानून का उल्लंघन होते समय निश्चिंत बैठते हैं, यह किस बात का लक्षण है ?

६. ‘ड्रंक एंड ड्राईव’ विरुद्ध का उपक्रम केसनंद में क्यों नहीं चलाया गया ?

कार्यक्रमस्थल पर होनेवाला मद्य का उपयोग देखते हुए ३१ दिसंबर के उपलक्ष्य में पुलिस द्वारा चलाई जानेवाला ‘ड्रंक एंड ड्राईव’ विरुद्ध का उपक्रम ‘सनबर्न’ के स्थल पर चलाने की मांग हिन्दुुत्वनिष्ठ एवं सामाजिक संगठनों द्वारा की गई थी । यह मांग भी दुर्लक्षित की गई । गाडी चलानेवाले मद्यपी उस स्थान पर निश्चित रूप से मिल पाते थे; परंतु कदाचित ‘सनबर्न’ की प्रतिमा मलिन न हो, इस हेतु वहां यह उपक्रम नहीं चलाया गया ।

७. अवैध उत्खनन प्रकरण में आदेश देने में विलंब क्यों ?

‘सनबर्न फेस्टिवल’ में अवैधानिक रूप से उत्खनन किया गया इसलिए हवेली प्रांताधिकारी ज्योति कदम ने आयोजकों को ६२ लाख रुपए का दंड सुनाया । यद्यपि वैधानिक कार्यवाही का यह कृत्य अभिनंदनीय है, तब भी ‘यह कार्यवाही इतने विलंब से क्यों की गई ?’, यह प्रश्न तो शेष रह ही जाता है ।

८. व्यसनमुक्ति का उपक्रम चलानेवाले अंनिसवाले, पर्यावरणवादी एवं स्त्रीमुक्तिवाले कहां छिपे बैठे थे ?

पुणे जैसे नगर में पर्यावरणरक्षा के नाम पर हिन्दुओं के धार्मिक कृत्यों पर आक्षेप लगानेवाले तथा भारतीय संस्कृति पर आलोचना कर स्त्रीसक्षमीकरण का राग आलापनेवाले लोगों की संख्या कम नहीं है; परंतु ये सब लोग ‘सनबर्न’ के संदर्भ में मौन थे ।

३१ दिसंबर के उपलक्ष्य मेें अंनिसवालों की ओर से व्यसनमुक्ति का उपक्रम चलाया जाता है; परंतु अंनिसवाले तथा स्त्रीवादी आदि लोगों की ओर से युवा पीढी को व्यसनाधीन बनानेवाले ‘सनबर्न फेस्टिवल’ का विरोध होता दिखाई नहीं दिया । इन लोगों के मुख से विरोध का एक शब्द भी सुनाई नहीं दिया ।

९. क्या ऐसा मानना चाहिए कि, नियम एवं कानून से भी महत्त्वपूर्ण पैसेवाले हैं ?

संक्षेप में, ‘सनबर्न फेस्टिवल’ के उपलक्ष्य मेें पैसेवाले नियम एवं कानून से भी अधिक वर्चस्ववाले सिद्ध होते हैं, यह दिखाई दिया । इससे सरकार तथा पुलिस-प्रशासन की ‘धृतराष्ट्र-गांधारी’ मानसिकता स्पष्ट हुई । पर्यटनवृद्धि के नाम पर संस्कृतिप्रेमी कहलानेवालों की ओर से ही संस्कृति से कैसे समन्वय किया जाता है, यह अनुभव करने को मिला । यद्यपि ‘सनबर्न’ संपन्न हुआ, तब भी इस कार्यक्रम के प्रति किया गया विरोध लक्षणीय था । अनेक सामाजिक, हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन तथा गणेश मंडलों ने वैधानिक मार्ग से ‘सनबर्न’ का विरोध दर्शाया । इसके कारण अनेक संस्कृतिप्रेमी लोगों का संगठन हुआ एवं हिन्दुत्व सशक्त हुआ । श्रीकृष्ण के चरणों में ऐसी प्रार्थना है कि, भविष्य में इस हिन्दुत्व की आवाज और बुलंद होकर ‘सनबर्न’ के समान कार्यक्रमों से सर्वथा अनभिज्ञ रहनेवाले ‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना हो । !

संकलक : प्रा.(कु.) शलाका सहस्रबुद्धे, पुणे

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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