रामजन्मभूमि प्रकरण में पुरातत्वीय एवं ऐतिहासिक सभी प्रमाण संपूर्ण रूप से हिन्दुआें के पक्ष में थे । वर्ष १९७६-१९७७ में वरिष्ठ पुरातत्व वैज्ञानिक बी.बी. लाल के नेतृत्व में अयोध्या में खुदाई कर, प्रमाण एकत्र करनेवाले समूह में पुरातत्व विभाग के पूर्व निदेशक पद्मश्री के.के. मोहम्मद भी सम्मिलित थे । उनके द्वारा रामजन्मभूमि के निर्णय के परिप्रेक्ष्य में व्यक्त किए गए विचार !
करिंगमन्नू कुजीईल मोहम्मद का परिचय
पुरातत्व वैज्ञानिक करिंगमन्नू कुजीईल मोहम्मद का जन्म १ जुलाई १९५२ को कालीकट में हुआ । वे भारतीय पुरातत्व विभाग के उत्तर विभाग के विभागीय निदेशक थे । उन्होंने आगा खान न्यास संस्था की विविध परियोजनाआें पर भी काम किया है । उन्होंने वर्ष १९७५ में अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय से इतिहास विषय में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की और पश्चात पुरातत्व विषय में स्नातकपूर्व उपाधि ली । उन्होंने देहली (दिल्ली) में पुरातत्वशास्त्र का प्रशिक्षण लिया । अकबर ने जहां ‘दिन-ए- इलाही’ की स्थापना की थी, वहां उन्होंने शोधकार्य किया । अकबर द्वारा निर्मित ईसाई धर्मस्थल, सम्राट अशोक द्वारा निर्मित केसरिया स्तूप, वैशाली की बौद्ध वास्तु, साथ ही कालीकट एवं मल्लपुरम् में कई परियोजनाआें पर काम किया है ।
१. अलग-अलग कालखंड के ग्रंथों में रामजन्मभूमि के संदर्भ में उल्लेख
१ अ. वर्ष १५५६ से १६०५ तक अकबर के कार्यकाल में जब अबुल फजल ने ‘आईन-ए-अकबरी’ पुस्तक लिखी, तब मस्जिद का अस्तित्व था । अबुल फजल ‘आईन-ए-अकबरी’ में लिखते हैं, ‘‘चैत्र मास में रामजन्मभूमि पर बडी संख्या में श्रद्धालु हिन्दू पूजा-अर्चना करने आते थे ।’’
१ आ. वर्ष १६०५ से वर्ष १६२८ इस जहांगीर के कार्यकाल में अयोध्या में आए ब्रिटिश यात्री विलियम फिन्स ने भी अपनी यात्रावर्णन में लिखा है कि यहां (रामजन्मभूमि पर) विष्णुजी के उपासक पूजा-अर्चना के लिए आते थे । इसमें विशेष बात यह है कि इस वर्णन में कहीं भी मस्जिद का उल्लेख नहीं है ।
१ इ. लंबे समय पश्चात वर्ष १७६६ में पादरी टेलर ने भी इस स्थान पर हिन्दुआें द्वारा पूजा-अर्चना करने का उल्लेख किया है; किंतु उन्होंने यहां नमाजपठन के संदर्भ में कुछ भी नहीं लिखा है ।
वर्ष १९८६ में उत्तर प्रदेश के जिला न्यायाधीश ने अयोध्या के इस स्थान को लगाए गए ताले को खोलने के लिए कहा । पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई केवल एक प्रमाण के रूप में ही उपलब्ध नहीं है, अपितु वर्ष १९७०, वर्ष १९९२ और वर्ष २००३ में भी ३ बार खुदाई की गई है और तीनों बार ‘वहां मंदिर ही था’, यह निष्कर्ष निकाला गया है ।
२. अयोध्या के साथ पैगंबर या खलीफा का संबंध नहीं है !
अयोध्या के साथ पैगंबर का किसी भी प्रकार का संबंध दिखाई नहीं दिया । पैगंबर के पश्चात आए ४ खलीफा अबू बकर, हजरत उमर, हजरत उस्मान एवं हजरत अली का भी अयोध्या के साथ कोई संबंध नहीं है । ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती एवं निजामुद्दीन अवलिया अथवा अन्य किसी भी अवलिया का संबंध इसमें दिखाई नहीं दिया । केवल एकमात्र मुगल राजा का नाम उससे जुडा है, जो मुसलमानों के लिए आस्था का विषय ही नहीं हो सकता, जितना मुसलमानों के लिए मक्का और मदीने का महत्त्व है, उतना ही हिन्दुआें के लिए श्रीराम एवं श्रीकृष्ण जन्मभूमि का महत्त्व है ।
३. वामपंथी इतिहासकारों के कारण रामजन्मभूमि का विवाद बढा !
रामजन्मभूमि के संदर्भ में विवाद बढाने के लिए के. मोहम्मद, साम्यवादी इतिहासकार अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इरफान हवीन तथा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की रोमिला थापर और देहली विश्वविद्यालय के आर.एस. शर्मा को उत्तरदायी प्रमाणित करते हैं । मोहम्मद कहते हैं कि अयोध्या में की गई खुदाई में वहां के मनुष्य जीवन का कार्यकाल १२००-१३०० वर्ष पूर्व का दिखाई देता है । कदाचित अन्य स्थानों की खुदाई करने पर यह मानवीय कार्यकाल उससे भी पीछे जा सकता है । इसीलिए साम्यवादी इतिहासकारों ने यह प्रमाणित करने का प्रयास किया कि अयोध्या में मानवीय
हस्तक्षेप के प्रमाण नहीं मिले हैं । साम्यवादी इतिहासकारों ने लोगों को भ्रमित किया और उससे यह प्रकरण उलझता गया । ७० के दशक में और उसके पश्चात भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार की गई खुदाई में अयोध्या में मंदिर के अवशेष मिले हैं । ये अवशेष ही यह बताते हैं कि यहां इससे पहले कभी श्रीविष्णु मंदिर था ।
४. खुदाई में प्राप्त मंदिर के अवशेष !
इस खुदाई में हमें मंदिर के स्तंभों के नीचे ईटों की एक रचना दिखाई दी । उसके पश्चात मैं जब वहां गया, तब मुझे मस्जिद की दीवार में मंदिर के स्तंभ दिखाई दिए । स्तंभ के निचले भाग में ११ वीं एवं १२ वीं शताब्दी के मंदिर में दिखाई देनेवाले संपूर्ण कलश दिखाई दिए । मंदिर कला में ये कला ८ ऐश्वर्यप्रतीकों में से एक है । मस्जिद को गिराने से पहले हमने ऐसे १४ स्तंभ देखे हैं । बाबर के सेनापति मीर बांकी द्वारा तोडे गए अथवा पहले से तोडे गए अवशेषों का उपयोग कर ही मस्जिद बनाई गई थी । हमने पहले जिन पत्थर के स्तंभों के संदर्भ में बताया, वैसे ही स्तंभ, ईंटों का चबूतरा हमें मस्जिद के
बाजू में और पीछे भी दिखाई दिया था । उसके आधार पर मैंने कहा था कि मस्जिद के नीचे मंदिर था । मस्जिद के ढेर में विष्णु हरिशिला पटल मिला । उसमें ११ वें – १२ वें शतक की नागरी लिपी में संस्कृत भाषा में लिखा है कि यह मंदिर श्रीविष्णु को समर्पित है । यहां शिव-पार्वती की मिट्टी की मूर्तियां भी मिली हैं ।
५. इच्छा के अनुरूप ही निर्णय मिला !
अयोध्या प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय हमारी इच्छा के अनुरूप ही आया है । पुरातत्वीय एवं ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर ही मैंने कहा था कि अयोध्या में मस्जिद से पहले मंदिर था । मुझे पुरातत्वीय अध्ययन की अवधि में अयोध्या में काम करने का अवसर मिला । खुदाई का काम निष्पक्ष हो; इसके लिए कुल १३४ मजदूरों में ५२ मजदूर मुसलमान थे । खुदाई में प्राप्त २६३ अवशेषों के कारण अयोध्या में मस्जिद से पहले मंदिर होने की पुष्टि हुई थी । उसके लिए मुझे कुछ लोगों ने भला-बुरा कहा और धमकियां भी दीं । अब इस निर्णय के कारण दोषमुक्त अनुभव कर रहा हूं ।