१. अंदमान के कारागृह में रहते हुए स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने उनके सहबंदियों को साक्षर करने के प्रयत्नों में हिंदी भाषा के प्रचार का महत्त्वपूर्ण कार्य किया । उस काल में कारागृह में पत्राचार की भाषा उर्दू थी । सावरकरजी ने कारागृह में बंदीवानों को अधिकारियों से हिंदी में पत्राचार करने को प्रेरित किया । उनके इस कार्य को अधिकारियों ने विरोध किया ।
२. ‘संपूर्ण देश को जोडनेवाली एक भाषा होनी चाहिए और वह देवनागरी लिपी की हिंदी ही होनी चाहिए’, ऐसा स्वा. सावरकरजी का मत था ।
३. वे हिंदी भाषिक पुस्तकों का वितरण और बिक्री करने के लिए दूसरों को प्रोत्साहित करते थे । स्वात्र्यंतवीर सावरकर सदैव कहते थे, ‘विशेष प्रसंगों में यदि कोई किसी को उपहार देना चाहता होगा, तो वह हिंदी भाषिक पुस्तक भेंट दें ।’
४. सभी लोग अपनी प्रांतीय भाषा सिखते समय उसके साथ हिंदी भी सीखें, ऐसा स्वा. सावरकर सभी को समझाते थे । उन्होंने कभी भी मराठी भाषा को हिंदी से अधिक महत्त्व नहीं दिया ।
५. सावरकर के हिंदी भाषा के प्रचारकार्य में आर्य समाज के कार्यकर्ताओं ने सहयोग दिया । स्वामी दयानंद सरस्वती हिंदी के समर्थक थे । उन्होंने अपना सर्व वाङ्मय हिंदी में ही लिखा है । ‘हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा होनी चाहिए’, ऐसा स्वामीजी का मत था ।
६. भाषाशुद्धि के लिए प्रयत्न करना : स्वा. सावरकर कहते थे, ‘अंग्रेजी, अरबी ऐसी भाषाओं के शब्द, एक प्रकार से अपनी भाषापर लगाए कोडे ही हैं । हिंदी से प्रत्येक विदेशी शब्द को चावल के कंकडसमान चुनकर बाहर फैंकना चाहिए ।
संदर्भ : गीता स्वाध्याय, सितंबर २०१०