वैज्ञानिकों ने जंगमुक्त, हलकी तथा टिकाऊ वस्तु, ‘प्लास्टिक’ का निर्माण तो कर दिया; किन्तु सबसे बडी समस्या यह है कि इसके कूडे का विघटन नहीं होता । इससे प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है । पुनः प्रयोग में न आनेवाली प्लास्टिक की वस्तुओं को कहां फेंके तथा कैंसे नष्ट करें, यह विश्व के लिए चर्चा और चिन्ता का विषय बना हुआ है । इसलिए, प्लास्टिक उद्योग से लाखों लोगों को जीविका मिल रही है केवल इस आधारपर, प्लास्टिक का प्रयोग जारी रखने से संकट को निमन्त्रण मिलेगा ।
१. भूमि की उर्वरता (उपजाऊपन) नष्ट होने का संकट !
अ. ‘एक प्लास्टिक थैली का विघटन होने में १०० वर्ष से अधिक समय लगता है । इस कालावधि में उससे बडी मात्रा में रासायनिक पदार्थ निकलते रहते हैं, जिनसे आसपास की भूमि की उर्वरता नष्ट होने लगती है । – श्री. अरविन्द जाधव, फोंडा, गोवा.
आ. प्लास्टिक की थैलियां जलाशय में जाती हैं । जब यह प्लाास्टिकयुक्त पानी खेत में पहुंचा है, तब इससे भूमि की धारणक्षमता तथा अन्न उत्पादन क्षमता दुष्प्रभावित होती है ।
२. बाढ आना
२६ जुलाई २००५ को मूसलाधार वर्षा के पश्चात मुम्बई में जो जलप्रलय हुआ, उसके अनेक कारणों में एक था, ‘प्लास्टिक थैलियों का प्रयोग’ । – श्री मिलिन्द मुरुगकर, महेश शेलार (लोकसत्ता, १०.२.२०११)
३. प्राणियों के पेट में प्लास्टिक कूडा जाने से उनमें रोग की गम्भीर समस्या उत्पन्न हो गयी है ।
वर्तमानस्थिति : प्लास्टिक थैलियों के संबंध में सरकारने एक विधान पारित किया था । उसके अनुसार कुछ विशिष्ट आकार की ही थैलियों के ही उत्पादन की अनुमति उत्पादकों को दी गयी थी । किन्तु, मिलनेवाले लाभ के लोभ में पडने से इस नियम की पूर्णतः उपेक्षा हो रही है, जिससे पर्यावरण के लिए घातक प्लास्टिक थैलियों का उत्पादन अबाधित जारी है ।
– श्री. अरविन्द जाधव, फोंडा, गोवा.