हिंदुस्थानका ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्वका वातावरण आतंकवादसे दूषित हो गया है । इस दूषित वातावरण एवं सूक्ष्म जगतकी शुदि्ध करनेके लिए यज्ञसे श्रेष्ठ अन्य कोई उपाय नहीं है । वातावरण दूषित होनेके कारण कहीं सूखा, कहीं बाढ, कहीं प्रलय तो कहीं रोगोंका प्रभाव है । संपूर्ण विश्वमें युद्धके बादल मंडरा रहे हैं ।
स्थान स्थानपर द्वेष, स्वार्थ, आतंकवाद, अपराध, तस्करी तथा इसीप्रकारकी अनेक घृणास्पद एवं भयावह घटनाएं हो रही हैं । वातावरण दूषित होनेके कारण ये सर्व घटनाएं अधिकतम हो रही हैं । वातावरणसे उन्हें प्रेरणा मिलती है । फसल अच्छी नहीं होती । मनुष्यको सुखशांति नहीं मिलती । वायुमंडल भी दूषित है । संतानपर उसका घातक परिणाम हो रहा है । दुष्ट एवं पतित प्रजाका जन्म हो रहा है । अंधे एवं अपंग बालकोंका जन्म हो रहा है ।
वातावरण, वायुमंडल, विकिरणका प्रभाव संपूर्ण विश्वमें फैला हुआ है । इसपर पुस्तकोंके उपाय, शस्त्रास्त्र अथवा मानवी पुरुषार्थ, भौतिक पुरुषार्थका उपयोग नहीं है । इस पर आध्याति्मक पुरुषार्थ ही सर्वाधिक सफल उपाययोजना हो सकती है । आध्याति्मक पुरुषार्थमें यज्ञकी महिमा बताई गई है । गायत्री यज्ञसे नए दृश्य निर्माण करनेकी शकि्त उत्पन्न होती है । इस शकि्तसे वातावरणकी अशुदि्ध स्वच्छ होती है । स्वच्छता एवं पवित्रीकरण करनेकी क्षमता केवल यज्ञमें ही है । यज्ञद्वारा आप संपूर्ण विश्वकी सेवा कर सकते हैं ।
लंकादहन एवं विजयके पश्चात राक्षस तो मारे गए; परंतु वातावरण अशुद्ध ही था । उसका निवारण करने तथा वातावरणका सामना करनेके लिए प्रभु श्रीरामचन्द्रने १० अश्वमेध यज्ञ किए । कौरवोंके कालमें कंससे लेकर जरांसंधतक जिन्होंने अन्याय एवं अत्याचार किए थे, वे सर्व महाभारतके युद्धमें मारे गए । तथापि वातावरण वैसा ही अशुद्ध था । उसमें दुष्टता भरी हुई थी । उसका शमन करनेके लिए भगवान श्रीकृष्णने यज्ञ करने हेतु कहा था । राजसूय यज्ञका उद्देश्य वातावरणकी शुदि्ध करना ही था । – आचार्य श्रीराम शर्मा