१. वनस्पति : ‘जीवित प्राणीद्वारा प्राणवायु ग्रहण की जाती है तथा कार्बाम्लयुक्त (दूषित) वायु बाहर छोडी जाती है । यह दूषित वायु वातावरणमें अधिक मात्रामें न रहे, इसलिए वृक्ष एवं बेलें कार्बाम्लयुक्त वायु ग्रहण करते हैं तथा प्राणवायु बाहर छोडते हैं । तुलसी प्राणवायुका प्रसारण बडी मात्रामें करती है । वृक्षोंसे वर्षा होनेमें सहायता मिलती है ।
२. गाय : गायसे बाहर निकलनेवाला तत्व शुद्ध होता है; इसलिए गायोंकी रक्षाकर उनका पालन एवं संवर्धन करने हेतु कहा गया है । गायका गोबर एवं गोमूत्र वातावरण शुद्ध करता है ।
३. पृथ्वी : पृथ्वीपर स्थित मिट्टी भी वातावरणशुदि्धका कार्य करती है ।
४. जल : जलतत्व शुदि्धकरणका कार्य करता है ।
५. अगि्न : पंचमहाभूतोंमें अगि्नतत्व दोष नष्टकर वातावरण शुद्ध स्वरूपमें रखता है ।
६. आकाश : आकाशका विस्तार विशाल स्वरूपमें रखा गया है । जिससे पृथ्वीसे जानेवाली दूषित वायु ऊपर जाकर आकाशमें समा जाती है तथा वातावरण शुद्ध बना रहता है ।
– प.पू. परशराम पांडे महाराज, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल.
पृथ्वीतत्व, अगि्नतत्व एवं वायुतत्वमें प्रदूषण नष्ट करनेकी क्षमता होना !
पृथ्वीतत्व, अगि्नीतत्व एवं वायुतत्व प्रदूषण नष्ट करते हैं ।
मलमूत्र इत्यादि गंदगी भूमि आत्मसात करती है ।
शेष प्रदूषण अगि्न एवं वायुतत्व नष्ट करते हैं ।
– डॉ. गुरुदेव काटेस्वामीजी, साप्ताहिक सनातन चिंतन