नगरों में जनसंख्या वृदि्ध पर्यावरण के लिए हानिकारक !
‘विगत दस वर्षों में नागरी क्षेत्रों में जनसंख्या तीव्र गति से बढ रही है । इससे पर्यावरण गम्भीर संकट में पड गया है । नगरों की ओर बडी संख्या में आनेवाले जनसमूहों की आवश्यक्ताओं को पूरा करने के लिए दिन-प्रति-दिन बडी संख्या में वृक्ष काटे जा रहे हैं और इसके लिए पर्यावरण के नियमों का खुलकर उल्लंघन हो रहा है । इसीलिए, भय व्यक्त किया जा रहा है कि कुछ ही दिनों में यह प्रश्न उग्ररूप ले लेगा !
(महाराष्ट्र टाईम्स, १०.४.२००१)
नगर : ग्रामों को नगरों में परिवर्तित करने की प्रकि्रया तीव्र गति से होने के कारण सुविधाएं उपलब्ध कराने के नामपर हरियाली घट रही है और सीमेन्ट-कांक्रीट के वन (अर्थात् ऊंचे-ऊंचे भवनों की संख्या) बढ रहे हैं । नगरों में बसनेवाली चिडियां, कौए और कपोत जैसे पक्षी तथा खेत में रहनेवाले विषहीन सांप और मेंढकों की संख्या घटी है । खाडी के आसपास के वनों की कटाई के कारण खाडी क्षेत्र में स्थलांतर करनेवाले अनेक पक्षी आज नहीं दिखाई देते ! दिन-प्रति-दिन बालू निकासी के कारण खाडी की दुर्दशा हुई है !