१. भोजन के समय आसपास का वातावरण
अ. आल्हाददायक/सात्त्विक हो ।
आ. भोजन करते समय वाद-विवाद अथवा झगडा न हो, इस बात का ध्यान रखें ।
२.भोजन प्रारम्भ करते समय
अपने आराध्यदेव को नमस्कार कर पूरा भोजन उन्हें अर्पित करें । तत्पश्चात ही अर्पित भोजन को प्रसाद के रूप में ग्रहण करें ।
३. भोजन कब करें ?
जब पिंगला नाडी (दाईं नाडी) चल रही होती है, उस समय भोजन करने से खाए हुए अन्न का पाचन ठीक से होता है ।
३ अ. भोजन के उपरान्त बाईं करवट लेटना : पिंगलानाडी न चल रही हो, तो भोजन करते समय बायां घुटना अथवा कपडे का गोलाबाईं कांख में दबाकर रखने से, पिंगलानाडी, दाईं नाडी चलने लगती है । भोजन के उपरान्त बाईं करवट लेटने का उद्देश्य पिंगलानाडी को चालू करना ही है ।
४. कितनी बार एवं कितने समय के उपरान्त भोजन करें ?
दिनभर का पूरा भोजन एक ही समय न खाकर, थोडी-थोडी मात्रा में २-३ बार खाएं। एक बार भोजन करने के उपरान्त, यथा सम्भव तीन घण्टे कुछ न खाएं ।