‘‘अपने अद्वितीय पराक्रमद्वारा ‘राव के नाम से सभी को डराने वाले’ ऐसी धाक निर्माण करनेवाले, बीस वर्ष की कार्यकाल में धुआंधार पराक्रम के नए–नए अध्याय रचनेवाले, विविध अभियानों में लगभग पौने दो लाख किलोमीटर की घुडदौड करनेवाले, ‘देवदत्त सेनानी’ ऐसी लोकप्रियता प्राप्त करनेवाले, तथा मराठा साम्राज्य की धाक संपूर्ण हिंदुस्थानपर निर्माण करनेवाले ज्येष्ठ बाजीराव पेशवाजी का स्मरण रखना आवश्यक है ।’’
ज्येष्ठ बाजीराव पेशवा (अगस्त १८, १६९९ – अपै्रल २५, १७४०) मराठा साम्राज्य के चौथे छत्रपति शाहू महाराज के १७२० से आ जीवन पेशवा (मराठों के प्रधान मंत्रियों की उपाधि) थे । उन्हें ज्येष्ठ बाजीराव या प्रथम बाजीराव इस नाम से भी पहचाना जाता है । रणधुरंधर प्रथम बाजीरावने अपने कुशल युद्ध नेतृत्व से छत्रपति शिवाजी महाराजद्वारा स्थापित किये हुए मराठा साम्राज्य की सीमाओं का उत्तर भारत में भी विस्तार किया । ‘तीव्र गति से युद्ध करना, यह उनके युद्ध-कौशल्य का महत्त्वपूर्ण भाग था । उनकेद्वारा लडे गये सभी युद्ध उन्होंने जीते । जब छत्रसाल बुंदेला दिल्ली की सेना के सामने हतबल हो गये, तब उन्होंने बाजीराव को गुप्त पत्र लिखा अर्थात् बाजीराव से सहायता मांगी । बाजीरावने वहां भी अपनी तलवार की गरिमा बनाए रखी । उनका उपकार चुकाने के लिए छत्रसाल बुंदेलाने ३ लाख हैट्रिक टन वार्षिक उत्पन्न करनेवाला भूभाग बाजीराव को भेंट दिया । इसके साथ ही अपनी अनेक उपपत्नियोंमें से एक पत्नी की कन्या ‘मस्तानी’ से उनका विवाह कराया ।