‘चौदहवीं शताब्दी में देवगिरी राज्यपर राजा रामदेव राज्य करते थे । मुसलमान सम्राट (बादशाह) अल्लाउद्दीन ने देवगिरीपर आक्रमण किया तथा राजा को आत्मसमर्पण करने हेतु कहा; परन्तु पराक्रमी रामदेव ने उसे धिक्कारा । इसलिए अल्लाउद्दीन क्रोधित हो गया तथा उसने प्रचंड सेना के साथ देवगिरीपर चढाई की । देवगिरी का किला अभेद्य था सेना युद्ध में निपुण थी । अल्लाउद्दीन की सेना के असंख्य सैनिक मारे गए । उसे पराजय स्वीकारकर पीछे लौटना पडा । उस समय देवगिरीपर बडा विजयोत्सव मनाया गया ।
राजा रामदेव की सेना का एक पराक्रमी सैनिक पूर्व के एक युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गया था । उसकी पुत्री वीरमति को राजा ने स्वयं की पुत्री के समान संभाला था तथा विवाह योग्य होते ही कृष्णराव नामक एक युवक के साथ उसका विवाह निश्चित किया । कृष्णराव अत्यंत स्वार्थी एवं लोभी था । पराजित अल्लाउद्दीन जब लौट रहा था, उस समय कृष्णराव ने उससे भेंट की तथा विजय प्राप्त करने के उपरांत कृष्णराव को राजा बनाने का प्रतिबन्ध लगाते हुए देवगिरी किले का रहस्य एवं सेना की शक्ति की सम्पूर्ण जानकारी अल्लाउद्दीन को दी । अल्लाउद्दीन ने देवगिरीपर पुनः आक्रमण किया ।
यह समाचार मिलते ही राजा रामदेव ने त्वरित सर्व सरदारों की सभा आमन्त्रित की तथा कहा कि, ‘‘किसी प्रकार की सूचना मिले बिना पराजित शत्रु पुनः आक्रमण नहीं करता । इसका अर्थ यह है कि हममें से किसीने दगा किया है; परन्तु चिन्ता न करें, हम उसे पुनः पराजित करेंगे ।’’ यह सुनकर सभी ने अपनी अपनी तलवारें बाहर निकाली तथा बोले ‘‘इस युद्ध में हम पूर्ण शक्ति से लडेंगे तथा देवगिरी की रक्षा करेंगे ।’’ उस समय कृष्णराव मौन ही था । इसलिए सभी को आश्चर्य हुआ । सबने उसके मौन का कारण पूछा । तब वीरमति क्रोधित शेरनी के समान उसपर झपट पडी तथा बोली कि यह देशद्रोही है एवं बिजली की गति से उसने कटि से तीक्ष्ण कट्यार निकालकर उसकी छाती में घोंप दी । वीरमति को कृष्णराव की प्रामाणिकतापर पूर्व से ही सन्देह था; इसलिए उसने उसपर गुप्त दृष्टि रखी थी । जब उसे जानकारी मिली कि वह अल्लाउद्दीन से जा मिला है, तब वह आगबबूला हो गई थी । उसे उसके पाप का दंड देना ही था । अवसर मिलते ही उसने उसे दंड दिया ।
मरते मरते कृष्णराव बोला, ‘‘मैं देशद्रोही होते हुए भी तुम्हारा पति….’’ तब वीरमति बोली ‘‘मेरा विवाह आपसे होनेवाला था तथा मैंने भी आपको ही अपना पति माना था । हिन्दू स्त्री एक बार मन से जिसे पति मान लेती है, पुनः अन्य पुरुष का विचार भी नहीं करती । आप जैसे देशद्रोही को मारकर मैंने देश कर्तव्य किया है । अब पत्नी के धर्म का पालन करूंगी ।’’ यह कहकर उसने तलवार निकाली एवं स्वयं के पेट में घोंप ली । दूसरे ही क्षण वह गतप्राण होकर कृष्णराव के शव के पास गिर पडी ।’
संदर्भ : साप्ताहिक ‘जय हनुमान’, १६ फरवरी २०१३