शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे
गजे साधवो न हि सर्वत्र चन्दनं न वने वने ।।
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अर्थ : हर एक पर्वतपर माणिक नहीं होते, हर एक हाथी में (उसके गंडस्थलमें ) मोती नहीं मिलते साधु सर्वत्र नहीं होते । हर एक वनमें चंदन नहीं होता दुनिया में अच्छी चीजें अधिक मात्रा में नहीं मिलती ।
सर्वं परवशं दु:खं सर्वम् आत्मवशं सुखम् ।।
एतद् विद्यात् समासेन लक्षणं सुखदु:खयो: ।।
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अर्थ : जो चीजें अपने अधिकार में नहीं हैं वह सब दु:ख हैं तथा जो चीज अपने अधिकार में है वह सब सुख है । संक्षेप में सुख और दु:ख के यह लक्षण हैं ।
अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम् ।
अधनस्य कुतो मित्रम् अमित्रस्य कुतो सुखम् ।।
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अर्थ : आलसी मनुष्य को ज्ञान कैसे प्राप्त होगा ? यदि ज्ञान नहीं तो धन नहीं मिलेगा । यदि धन नहीं है तो अपना मित्र कौन बनेगा ? और मित्र नहीं तो सुख का अनुभव कैसे मिलेगा ।
आकाशात् पतितं तोयं यथा गच्छति सागरम्
सर्वदेवनमस्कार: केशवं प्रति गच्छति ।।
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अर्थ : जिस प्रकार आकाश से गिरा जल विविध नदियों के माध्यम से अंतिमत: सागर से जा मिलता है उसी प्रकार सभी देवताओं के लिए किया हुआ नमन एक ही परमेश्वर को प्राप्त होता है ।
नीरक्षीरविवेके हंस आलस्यम् त्वम् एव तनुषे चेत् ।
विश्वस्मिन् अधुना अन्य: कुलव्रतं पालयिष्यति क: ।।
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अर्थ : अरे हंस यदि तुम ही पानी तथा दूध भिन्न करना छोड दोगे तो दूसरा कौन तुम्हारा यह कुलव्रत का पालन कर सकता है ? यदि बुद्धिमान तथा कुशल मनुष्य ही अपना कर्तव्य करना छोड दे तो दूसरा कौन वह काम कर सकता है ?
कलहान्तनि हम्र्याणि कुवाक्यानां च सौदम्
कुराजान्तानि राष्ट्राणि कुकर्मांन्तम् यशो नृणाम् ।।
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अर्थ : झगडों से परिवार टूट जाते हैं। गलत शब्दप्रयोग करने से दोस्त टूटते हैं। बुरे शासकों के कारण राष्ट्र का नाश होता हैं। बुरे काम करने से यश दूर भागता है।
दुर्लभं त्रयमेवैतत् देवानुग्रहहेतुकम् ।
मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरूषसश्रय: ।।
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अर्थ : मनुष्य जन्म, मुक्ति की इच्छा तथा महापुरूषों का सहवास यह तीन चीजें परमेश्वर की कृपापर निर्भर रहते है ।
सुखार्थी त्यजते विद्यां विद्यार्थी त्यजते सुखम् ।
सुखार्थिन: कुतो विद्या कुतो विद्यार्थिन: सुखम् ।।
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अर्थ : जो व्यक्ति सुखके पीछे भागता है उसे ज्ञान नहीं मिलेगा तथा जिसे ज्ञान प्राप्त करना है वह व्यक्ति सुख का त्याग करता है ।सुख के पीछे भागनेवाले को विद्या कैसे प्राप्त होगी ? तथा जिसको विद्या प्राप्त करनी है उसे सुख कैसे मिलेगा?
उपार्जितानां वित्तानां त्याग एव हि रक्षणम्
तडागोदरसंस्थानां परीवाह इवाम्भसाम्
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अर्थ : कमाए हुए धन का त्याग करने से ही उसका रक्षण होता है । जैसे तालाब का पानी बहते रहने से साफ रहता है।
खल: सर्षपमात्राणि पराच्छिद्राणि पश्यति ।
आत्मनो बिल्वमात्राणि पश्यन्नपि न पश्यति ।।
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अर्थ : दुष्ट मनुष्य को दूसरे के भीतर के राई इतने भी दोष दिखाई देते है परंतु अपने अंदर के बिल्वपत्र जैसे बडे दोष नहीं दिखाई पडते ।
दानं भोगो नाश: तिस्त्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य ।
यो न ददाति न भुङ्क्ते तस्य तृतीया गतिर्भवति ।।
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अर्थ : धन खर्च होने के तीन मार्ग है । दान,उपभोग तथा नाश । जो व्यक्ति दान नहीं करता तथा उसका उपभोग भी नहीं लेता उसका धन नाश पाता है ।