एक बार सम्राट औरंगजेबने एक बहुत बडे बाघ को पकडा । अगले दिन उसने घमंड से राजसभा में पूछा, ‘‘ऐसा बाघ आपमें से किसीने कभी देखा है क्या ?’’ मुगलों की दास्यता विवशता से स्वीकारनेवाले जोधपुर के राणा यशवंतसिंह बोले, ‘‘मेरे पास एक ऐसा शावक है, जिसके सामने आपका पकडा हुआ यह बाघ कुछ भी नहीं है ।’’
अहंभाव से भरे औरंगजेबने राणाजी को ‘‘कौन बलशाली है ?’’ यह देखने के लिए शावक को लेकर आने के लिए बताया । अगले दिन राणाजी अपने चौदह वर्षीय साहसी एवं बलवान पुत्र पृथ्वीसिंह को राजसभा में लेकर आए और कहा कि, ‘‘यही मेरा शावक है ।’’ औरंगजेबने पृथ्वीसिंह को बाघ के पिंजरे में जाने के लिए कहा । पृथ्वीसिंह को पिंजरे में देखते ही बाघ उसी स्थानपर ठिठककर (सहमकर) खडा रह गया; परंतु सेवकों के बाघ को भाला चुभानेपर वह दहाडा एवं उसने पृथ्वीसिंहपर आक्रमण कर दिया । पृथ्वीसिंहने कमर से तलवार निकाली, जब वह प्रहार करनेवाला ही था तो राणाजीने उससे कहा, ‘‘बेटे! प्रतिस्पर्धी बाघ के पास तलवार न होते हुए तुम्हारा उसपर तलवार से वार करना न्यायसंगत नहीं ।’’
पिताजी के शब्द सुनते ही पृथ्वीसिंहने तलवार फैक दी एवं उस क्रुद्ध बाघपर आगे बढ कर आक्रमण कर दिया । उसने अपने दोनों हाथों से उसका जबडा पकडकर फाड डाला । देखते ही देखते बाघ के प्राण निकल गए । इतनी छोटीसी आयु में पृथ्वीसिंह के इस अपूर्व पराक्रम से सम्राट एवं अन्य सभी आश्चर्यचकित रह गए ।
बालमित्रो, अहिंसा का पालन करना अच्छा होते हुए भी, अंधी अहिंसा वृत्ति स्वयं का, समाज का तथा देश का घात करनेवाली होती है; इसलिए सामर्थ्य एवं शौर्य का जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है । शौर्य, निर्भयता एवं साहस इन गुणों से देश एवं संस्कृति का रक्षण होता है तथा वैभव बढता है ।