बालमित्रो, प्राचीन काल में वृत्रासुर नाम का एक दैत्य बडा ही उन्मत्त हो गया था । अति बलवान होने के कारण देवताओं को उसे हराना कठिन हो गया । उसके विनाश हेतु भगवान विष्णु ने सुझाया कि दधीचि ऋषि की अस्थियों से बङ्का बनाए, तो उससे वृत्रासुर का नाश हो सकता है । दधीचि ऋषि अति दयालु एवं सबकी सहायता करनेवाले थे । इंद्रदेव दधीचि ऋषि के पास गए, और इंद्रदेव ने कहा, मैं आपके पास याचक बनकर आया हूं । दैत्य वृत्रासुर का नाश करने के लिए एक बङ्का बनाना है । इसके लिए आपकी अस्थियां चाहिए । क्षणभर भी विचार न करते हुए दधीचि ऋषि ने कहा, ‘‘मैं प्राणत्याग कर अपनी देह ही आपको अर्पित करता हूं । फिर आप देह का जो चाहें कर सकते हैं । दधीचि ऋषि ने योगबल से प्राणत्याग किया । फिर उनकी देह की अस्थियों से षट्कोनी बङ्का बनाकर इंद्रदेव को दिया गया । तदुपरांत बङ्का को अभिमंत्रित कर उसका उपयोग करनेपर, वृत्रासुर का नाश संभव हुआ ।
बच्चो, वृत्रासुर का नाश करने के लिए दधीचि ऋषि ने अपने प्राण सहजता से दे दिए । इससे ध्यान में आता है कि ऋषि मुनि कितने महान थे। हम भी जितना हो सके अच्छे काम के लिए त्याग कर अपनी उज्ज्वल परंपरा को बनाए रखें ।