‘ज्ञानेश्वरी’ ग्रंथ महाराष्ट्र के संत ज्ञानेश्वर ने बारहवीं शताब्दी में लिखा । शक १२१२(इ.स.१२९०)में प्रवरा तटपर स्थित नेवासे गांव के मंदिर में एक खंभे का आधार लेकर संत ज्ञानेश्वर ने भगवत गीता का भाष्य किया, उसे ही ‘ज्ञानेश्वरी’ अथवा ‘भावार्थदीपिका’ कहते हैं ।
ज्ञानेश्वरी की विशेषताएं
अ. ईश्वरीय ज्ञान वह ज्ञानेश्वरी।
आ. ज्ञान का गूढ रहस्य जानकर लिखी गई, वह ज्ञानेश्वरी ।
इ. जिससे ज्ञान का झरना बह रहा है, वह ज्ञानेश्वरी ।
ई. जिसका ज्ञान होनेपर हमारा ईश्वर प्राप्ति का मार्ग सुलभ होता है, वह ज्ञानेश्वरी ।
उ. जो ईश्वरीय चैतन्य से भरपूर है, वह ज्ञानेश्वरी ।
ऊ. जो ईश्वरद्वारा ही निर्मित है, वह ज्ञानेश्वरी ।
ए. जो ईश्वर निर्मित होने के कारण चिरंतन है, वह ज्ञानेश्वरी ।
ऐ. ज्ञानदेव की वाणी जो शब्दों के माध्यम से फूट पडी एवं लिखी गई, वह ज्ञानेश्वरी ।
ओ. जनकल्याण हेतु जिसकी उत्पत्ति हुई, वह ज्ञानेश्वरी ।