वेदव्यास ने साक्षात् श्रीगणेश को ही अपना लेखक बनाया । उन्हें महाभारत लिखाना था । लाख से भी अधिक श्लोकों का प्रचंड महाग्रंथ था महाभारत ! यह प्रचंड ग्रंथ कौन लिखेगा ?
ऐसा बुद्धिमान, प्रज्ञासंपन्न, ऋतंभरा, प्रज्ञापूर्ण महापुरुष कहां मिलेगा ? व्यासने ग्रंथ लिखने हेतु विद्या के देवता श्रीगणेश से प्रार्थना की । भगवान गणपति ने कुछ शर्तें रखीं । उन शर्त के अनुसार व्यास को अनवरत श्लोक कहते जाना तथा कहीं भी रुकना नहीं था । व्यास विचार करने रुके, तो गणपति लेखन रोक देंगे तथा आगे नहीं लिखेंगे । व्यासने भी शर्त रखी, ‘‘जो भी मैं कहुंगा, वह अर्थ ग्रहण कर, समझ कर ही लिखना । केवल अक्षर कागजपर उकेरना नहीं । अर्थ को समझ कर ही श्लोक लिखना ।” गणपतिने हामी भरी; व्यास जैसे कहते गए, वैसे गणपति अर्थानुसंधान रख कर लिखते गए । व्यास को विचार करने का समय ही नहीं मिलता । व्यास भी चतुर थे । आगे का श्लोक मन में बनाने हेतु समय चाहिए होता, तब वे कूट श्लोक कहते, ‘श्लोकों का अर्थ शीघ्र समझ ही नहीं आये’, ऐसे कूटार्थवाले (दो-दो, तीन-तीन अर्थ वाले) श्लोक कहते । ऐसा कूटश्लोक आनेपर गणपति को विचार करना पडता । तब तक व्यास को समय मिल जाता । व्यास नित नए श्लोक मन में रचकर कहते । इस प्रकार लाख से भी अधिक श्लोक संख्या का महाभारत व्यासने कहा तथा गणपतिने लिखा । महाभारत में जो है, वह जग में कहीं भी नहीं । ‘यन्न भारते, तन्न जगति ।’ जग का सर्व सारस्वत वाड्मय व्यास के मुख की झूठन है, ‘व्यासोच्छिष्टं जगत् सर्वम् ।’
– गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी