अनुशासन और दंड, इन दोनों शब्दों की निर्मिति शिक्षा शब्दसे हुई है । शिक्षा की सहायता से अच्छा आचरण करने का अर्थ ही अनुशासन है । इसलिए दंड किस कारण से व किसी भूल अथवा अनाचार के लिए देना है, यह समझकर ही दंड देना चाहिए ।
अनुशासनप्रिय होने संबंधी महत्त्वपूर्ण सूचना
१. अच्छे आचरण की प्रशंसा व अनाचार के लिए दंड : बच्चों को परीक्षा में अच्छे अंक मिलनेपर या पारितोषक मिलनेपर उनकी प्रशंसा करें । इससे वे और अच्छा आचरण करने के लिए प्रोत्साहित होंगे । उनके अयोग्य आचरण के लिए अप्रसन्नता व्यक्त कर एवं आवश्यकता के अनुसार दंड भी दें ।
२. आज्ञा नहीं; अपितु विनती करें : ‘पानी लाओ’, ऐसा कहने की अपेक्षा ‘बेटे, मेरे लिए एक गिलास पानी लाओगे ?’, ऐसी विनती करें ।
३. घर के सदस्य का समान मत होना : बच्चों को अनुशासित करने से पूर्व बच्चों से किस प्रकार के आचरण की अपेक्षा है, इसका विचार कर अपनी भूमिका निश्चित करें व इसमें मतभेद न होने दें ।
माता-पिता का एवं घर के अन्य सदस्यों का सहमत होना, बच्चों में अनुशासन लाने के लिए अत्यंत आवश्यक है । खिडकीपर ऊंचा लटकने पर पिताने प्रशंसा की; परंतु मांने डांटा । ऐसा नहीं होना चाहिए । दंड कब देना है, इस संदर्भ में मां-पिताजी को आपसी मतभेद पहले ही सुलझा लेने चाहिए; बच्चों के सामने नहीं ।
४. चूक होते ही तुरंत दंड दें : ‘ठहरो, सायंकाल पिताजी को घर आने दो, फिर देखेंगे’ यह दंड देनेकी अनुचित पद्धति है । इससे पिताजी के आनेतक बच्चा दंड के भय से ग्रस्त रहता है ।
५. योग्य एवं अयोग्य दंड : बच्चों से लंबे समयतक बोलचाल बंद करना अथवा उन्हें दिनभर भूखा रखना, यह दंड योग्य नहीं है । इसके स्थानपर सायंकाल बच्चों को खेलने के लिए घर से बाहर न जाने दें अथवा उन्हें दूरचित्रवाणी न देखने दें, यह दंड उचित होगा ।
संदर्भ : सनातननिर्मित ग्रंथ ग्रंथ : ‘संस्कार ही साधना’