भय
‘भय के कारण मनुष्य संकट के प्रसंगों से दूर भागता है । आग अथवा गुंडों से दूर भागता है, उस समय उनका भय योग्य होता है; परंतु काल्पनिक कथाएं एवं अंधेरा, तिलचट्टा इत्यादि विषयों का भय अयोग्य है । भय नष्ट होने के लिए कुछ उपाय निकालने पडते हैं ।
भय कैसे कम करें ?
१. रात के समय अंधेरे के कारण बच्चा लघुशंका जाने से डरता हो, तो वहां दीपक जलाकर रखें ।
२. अधिकांशत: देखा जाता है कि यदि कक्ष में तिलचिट्टा उडते हुए आ जाए तो मां ही डर जाती है । ऐसी मां के बच्चे तिलचिट्टे से डरेंगे ही इसी कारण मां बच्चे के सामने न डरकर निर्भय (मजबूत) रहें ।
३. भय यदि किसी संकट को देखकर निर्माण होता हो तो वैसे प्रसंग टालने का प्रयास करें ।
उदा. कोई गुंडा पाठशाला के मार्ग में कष्ट दे रहा हो, तो पाठशाला जाने का मार्ग बदलना इष्ट है ।
४. कोई प्रसंग टालना असंभव है । उदा. किसी व्यक्ति को असाध्य कर्करोग (कैंसर) हुआ हो, तो वह तत्त्वज्ञान का अभ्यास करें । ‘यह रोग अपने ही पूर्व प्रारब्ध के पापकर्मों के कारण हम भुगत रहे हैं ।’ ऐसा निश्चय होनेपर अपने पापों से मुक्त होने के कारण वह कर्करोग को आनंद से स्वीकार कर सकता है ।
५. ‘देह नश्वर होने के कारण किसी को भी मृत्यु टालना असंभव है । प्रत्येक की आत्मा अमर होने के कारण मृत्यु के विषय में भय रखने की आवश्यकता नही’, ऐसा ही मनपर अंकित करें ।
शरीर से एवं मन से दुर्बल मनुष्य ही कायर होते हैं । ‘भित्यापाठी ब्रह्मराक्षस’ यह मुहावरा सर्वश्रुत है ही । भगतसिंह, स्वा.सावरकर इत्यादि देशभक्त निर्भयतापूर्वक मृत्यु से न डरते हुए दुष्ट ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध लडें । उनके बलिदान के फल का आज हम उपभोग कर रहे हैं ।
उपनिषद में बताया ही है,कि किसी अन्य के साथ संपर्क आनेपर वह हमें फंसाएगा यह भय हमें सदैव रहता है इसलिए साधु-संतोंद्वारा बताई गई सर्वत्र समदृष्टि रखने की वृत्ति से ही भय समाप्त होता है ।
– डॉ. वसंत बाळाजी आठवले, बालरोग तज्ञ (वर्ष १९९०)