बच्चे अनुकरणप्रिय होते हैं । जन्म से ही वे अपने मां-पिता का सतत निरीक्षण करते हैं । इस कारण अधिकांश बच्चों के चलने, बोलने एवं आचरण करने का पद्धति अपने माता-पिता के समान होती है । इस कारण माता-पिता अपने व्यवहार एवं बोलने की ओर अधिक ध्यान दें तथा स्वयं के दोष दूर करने का प्रयास करें ।
१ . प्रतिदिन प्रात:उठते ही ईश्वर को नमस्कार कर प्राणायाम करना एवं कुछ समय ध्यानधारणा करें ।
२. स्नान के उपरांत ईश्वर को, मां-पिता को एवं ज्येष्ठों को नमस्कार करें तथा सदैव ज्येष्ठों, गुरुजनों तथा शिक्षकों के मिलनेपर उन्हें नमस्कार करें ।
३. प्रतिदिन सूर्यनमस्कार करें एवं आसन तथा व्यायाम करें ।
४. दूध अथवा चाय पीने के उपरांत अपना बर्तन धोकर रखें ।
५. बाहर से आने के बाद पादत्राण (जूते-चप्पल) उतारकर पैर धोकर घर के भीतर प्रवेश करें ।
६. फल खाने के उपरांत छिल का घर में रखे कूडेदान में फेके ।
७. कुछ भी खाने अथवा भोजन से पूर्व हाथ धोएं ।
८. अन्नदेवता से प्रार्थना कर ही भोजन प्रारंभ करें, वैसे ही भोजन के उपरांत दांत ब्रश से स्वच्छ करें ।
९. पढने के उपरांत पुस्तक उचित स्थानपर रखें तथी खेलने के उपरांत बच्चे अपने खिलौने इत्यादि उचित स्थानपर रखें ।
१०. अतिथि के (मेहमान के) आनेपर उनका आदरातिथ्य करें तथा सदैव नम्रता से बोलें एवं आचरण करें ।.
११. संध्या के समय भगवान के सामने दीपक जलाकर स्तोत्रपठन करें ।.
१२. यदि ऐसा लगता है कि बच्चे अभ्यास छोडकर दूरदर्शन न देखें, तो उस समय स्वयं संयम रखकर अपनी पसंद का त्याग करें ।
(संदर्भ : ग्रंथ – ‘संस्कार हीच साधना !’ लेखक : डॉ. वसंत आठवले, बालरोगतज्ञ)