दत्त एवं उनकी वस्तुओं का क्या अर्थ है ?
दत्तात्रेय देवता में ब्रह्मा , विष्णु एवं महेश, इन त्रिदेवों के तत्त्व हैं । उनके हाथ में ब्रह्मदेव के कमंडल एवं जपमाला हैं, विष्णु के शंख एवं चक्र हैं तथा शिवजी के त्रिशूल एवं डमह्व हैं । इन में से प्रत्येक वस्तु का विशिष्ट भावार्थ है, उदा. कमंडल त्याग का प्रतीक है ।
दत्तात्रेय देवता के कंधेपर एक झोली भी होती है । उसका भावार्थ इस प्रकार है । झोली, मधुमक्खी का प्रतीक है । जिस प्रकार मधुमक्खी विभिन्न स्थानोंपर जाकर शहद जमा करती है, उसी प्रकार दत्तात्रेय दर-दर घूमकर झोली में भिक्षा जमा करते हैं । दर-दर जाकर भिक्षा मांगने से अहं शीघ्रता से कम होता है । इसलिए झोली, अहं नष्ट होने का प्रतीक है ।
दत्त एवं उनके परिवार का क्या अर्थ है ?
दत्तात्रेय देवता की विशेषता है कि, वे कभी भी अकेले नहीं दिखाई देते, सहपरिवार होते हैं । परिवार का आध्यात्मिक अर्थ इस प्रकार है ।
अ. दत्तात्रेय देवता के पीछे जो गाय है, वह पृथ्वी एवं कामधेनु का प्रतीक है ।
आ. चार कुत्ते, चार वेदों के प्रतीक हैं । गाय एवं कुत्ते, एक प्रकार से दत्तात्रेय देवता के अस्त्र भी हैं । गाय अपने सींग मारकर एवं कुत्ते काटकर शत्रु से रक्षण करते हैं ।
इ. औदुंबर यानी गूलर का वृक्ष दत्तात्रेय का पूजनीय रूप है; क्योंकि उसमें दत्त तत्त्व अधिक होता है ।
दत्तजयंती के निमित्त से दत्त एवं दत्त की
उपासना की विशेषताएं जानकर लेते है ।
दत्तात्रेय देवताद्वारा किए गुणगुरूओं का स्मरण करना : जगत् की प्रत्येक विषय-वस्तु ही गुरु है; क्योंकि अनिष्ट विषय-वस्तु से कौन से दुर्गुण छोडने चाहिए तथा उचित विषय-वस्तु से कौन से सद्गुण लेने चाहिए, यह सीख सकते है । इसलिए दत्तात्रेय देवताने २४ गुरु एवं अनेक उपगुरु किए । हम भी इसका स्मरण रख विविध गुणगुरु बनाकर, अपने दुर्गुणों का भागाकार एवं सद्गुणों का गुणाकार करनेपर ईश्वरप्राप्ति शीघ्र होने में सहायता होगी ।