होली अर्थात् दुष्प्रवृत्ति तथा अमंगल विचारों का नाश कर, सत्प्रवृत्ति का मार्ग दिखानेवाला उत्सव । होली मनाने में उदात्त भावना यह है कि, अग्नि में वृक्षरूपी समिधा अर्पण करने से वातावरण की शुद्धि हो ।
‘आदर्श होलिकोत्सव’ ऐसे मनाएं !
पूरे गांव में एक ही सामूहिक होली की पूजा करें । होली हेतु अच्छे वृक्षों कों बिना तोडेसूखी लकडी उपयोग में लाएं । श्री होलिकापूजन के स्थान को गोबर से लीपकर तथा रंगोली सजाकर सुशोभित करें । उसपर गोबर के कंडों की तथा गिनी-चुनी सूखी लकडियों की होली रचें । होली को गंध, फूल आदि चढाकर उसकी विधिवत पूजा करें ।शास्त्रोक्त मंत्रोच्चार करते हुए होली प्रज्वलित करें तथा उसमें दूध एवं घी की आहुति दें। अंत में श्री होलिकादेवी को मीठी रोटी का नैवेद्य चढाकर उपस्थितों को वह प्रसादरूप में दें । उपस्थितों को ‘राष्ट्र एवं धर्म हेतु कार्य करने के लिए शक्ति मिले’, ऐसी प्रार्थना करें ।सात्त्विकता वृद्धिंगत करनेवाला, पर्यावरण की हानि न करनेवाला तथा राष्ट्र एवं धर्म हेतुसमाज संगठित करनेवाला ‘आदर्श होलिकोत्सव’ आप भी मनाएं तथा ईश्वरीय कृपाप्राप्त करें !
होली एवं रंगपंचमी के समय आगे दी गई अनुचित कृतियां न करें !
- होली में जलाने के लिए हरे-भरे वृक्ष तोडना ; लकडी तथा अन्य सामग्रियों की चोरी करना l
- राहगीरों तथा वाहनचालकों से बलपूर्वक पैसे लेना अथवा उन्हें बलपूर्वक रंग लगाना l
- महिलाओंपर रंग फेकना, उन्हें छेडना अथवा उनकी ओर देखकर अश्लील चेष्टाएं करना l
- दूसरोंपर गंदे पानी के गुब्बारे फेकना, स्वास्थ्य के लिए घातक रंग अथवा उन्हें रसायनिक कोलतार लगाना l