स्वतंत्रताप्रेमी वीरांगना अवंतीबाई लोधी एक पराक्रमी, धैर्यशील और प्रसंगावधानी स्त्री थीं । उनका जन्म १६ अगस्त को मध्यप्रदेश के सिवनी जनपद में राव जुंझारु सिंह के राजमहल में हुआ । बचपन से ही उन्हें अश्वसंचालन, खड्गसंचालन, धनुर्विद्या एवं सैनिकी शिक्षा में रुचि थी ।
१७ वर्ष की आयु में उनका विवाह रायगढ के महाराजा लक्ष्मणसिंह के सुपुत्र कुंवर विक्रमादित्य से हुआ । विवाहोपरांत उनका नाम अवंती रखा गया । महाराजा लक्ष्मणसिंह के निधन होनेपर विक्रमादित्य रायगढ के राजा बने । कुछ वर्षोपरांत राजा विक्रमादित्य का शरीर स्वास्थ और मानसिक संतुलन बिगडने लगा । ऐसी स्थिति में शौर्यमूर्ति रानी अवंतीबाई ने राज्य का नेतृत्व संभालकर अपने साहस, धैर्य आणि प्रसंगावधान, इन गुणों का परिचय दिया ।
प्रतिकूल काल में भी अपने गुणों के कारण रानी अवंतीबाई द्वारा परिस्थितिपर सफलतापूर्वक विजय प्राप्त करना
इसी समय १८५१ में अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनीने राजा विक्रमादित्य सिंह को मनोरुग्ण घोषित कर, वहां अपना एक सेनादल रखकर रायगढ का राज्य हथियाने का निश्चय किया । कंपनी का यह षड्यंत्र ध्यान में आते ही, ऐसी स्थिति में भी रानी अवंतीबाईने अपने शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से रोगी पति को और राज्य के उत्तराधिकारी छोटे पुत्र को साथ में लिया । फिर रानीने बडी कुशलता से शासन कर अंग्रेज शासन की राज्य हथियाने की मंशा को कुचल दिया ।
पतिनिधन के उपरांत भी प्रजा का मन जीतकर अपने राज्य को अधिकाधिक विस्तृत करनेवाली कर्तव्यनिष्ठ रानी
आगे नानासाहेब पेशवा के नेतृत्व में छिडे स्वतंत्रता संग्राम में धैर्य और चतुरता के साथ उन्होंने अपना विस्तृत राज्य कंपनी सरकार के हाथ में जाने से बचाया, इसका गौरवगान करते हुए अंग्रेज कप्तान वॉडिंगटनने कहा, १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम में रायगढ का राज्य उसने इतना सुरक्षित रखा कि अनेक माहतक उसके सर्व ओर हमारे सैनिकोंद्वारा घेरा डालनेपर भी हम उसे प्राप्त नहीं कर सके । अपनी तलवार से शौर्य की सीमा को लांघनेवाली रानीपर उसी की सेना के एक विश्वासघाती ने पीछे से तलवार से आक्रमण कर दिया । इस प्रकार वीरांगनाने २० मार्च को संसार से बिदा ली ।
– श्री वसंत अण्णाजी वैद्य, नागपुर.
(संदर्भ : मासिक पत्रिका ललना, अगस्त २०१०)