‘जो पुस्तकों की देखभाल न करे, वह मूर्ख है !’– समर्थ रामदास स्वामी (श्री दासबोध, दशक २, समास १, पंक्ती १०) |
पुस्तकोंपर प्लास्टिक का वेष्टन चढाकर ही पढें !
ऐसा करने से हाथों का पसीना, गंदगी और धूल से मुख्यपृष्ठ तथा मलपृष्ठ खराब नहींहोता!
उंगलियों को थूक लगाकर पन्ने न पलटें !
पृष्ठ को थूक लगाना श्री सरस्वतीदेवी का अपमान है !थूक के माध्यम से वही पुस्तक पढनेवाले अन्य पाठकों को रोगाणु का संसर्ग हो सकता है !
चिन्ह के लिए पृष्ठ का कोना तथा पृष्ठ को नहीं मोडना चाहिए !
१. मुडे हुए स्थान से पृष्ठ का भाग निकल सकता है !
२. पुस्तक में चिन्ह के लिए मोटे धागे का प्रयोग करें! वह न होनेपर दूसरे किसी कागज का टुकडा पृष्ठपर रखें !
पुस्तक अलमारी में रखते समय उसे लिटाकर रखें!
अलमारी में पुस्तक खडी रखने से पृष्ठ निकल सकते हैं और पुस्तक तिरछी रखने पर वह टेढी हो जाती हैं !
अन्य सूचनाएं
१. पुस्तकपर स्वयं का नाम और पता के अतिरिक्त कुछ भी न लिखें अथवा उस पर आडी-तिरछी रेखाएं न बनाएं !
२. पुस्तक के चित्रों को बेरंग न करें तथा पृष्ठ न फाडें !
३. पुस्तक पढने के पश्चात् उसे पटके नहीं, सम्मान से योग्य स्थानपर रखें !
४. पुस्तक को पैर न लगाएं ! गलती से पैर लगनेपर उसे प्रणाम करें !
विद्यार्थी मित्रों, केवल स्वयं की ही नहीं, अन्यों की अथवा पुस्तकालय की पुस्तकों की इसी प्रकार देखभाल करें !