असामान्य साहसी बालक लाल बहादुर शास्त्री
अपने गरीब माता-पितापर बोझ न बनकर उनके पैसे बचाने के लिए प्रतिदिन गंगा नदी तैरकर पाठशाला में जानेवाला असामान्य साहसी बालक लाल बहादुर शास्त्री !
‘एक लडका काशी के ‘हरिश्चंद्र हाइस्कूल’में पढता था । उसका गांव काशी से ८ मील दूर था । वो वहां से प्रतिदिन पैदल पाठशाला जाता । रास्ते में गंगा नदी पार करनी पडती थी । उस समय गंगा पार करवाने के लिए नाववाला दो पैसे लेता था । दो पैसे जाने के और दो वापस आने के, यानी एक आना; इस हिसाब से प्रतिमाह लगभग दो रुपये । उस समय सोने का मूल्य सौ रुपये प्रति तोले से भी न्यून था, इसलिए यह राशी भी बहुत अधिक लगती थी ।
माता-पितापर पैसों का दबाव न आए, ऐसा सोचकर उस बालक ने तैरना सीख लिया । गर्मी, बरसात अथवा ठंडी हो, किसी भी ऋतु में वह गंगा तैरकर पार करता था । बहुत दिन बीत गए । एक दिन पौष माह की हाथ-पांव गला देनेवाली ठंडी में वह सुबह पाठशाला जाने हेतु पानी में उतरा । तैरते हुए नदी के मध्यभाग में पहुंचा । एक नाव में सवार होकर कुछ यात्री नदी पार कर रहे थे । उन्हें लगा कि एक छोटा लडका नदी में डूब रहा है, इसलिए उन्होंने नाव उसके समीप ली और उसे नाव में खींच लिया । उस लडके के मुखपर तिल मात्र भी डर अथवा चिंता नहीं थी । उसका असामान्य साहस देखकर सब लोग आश्चर्यचकित हो गए !
लोग : अभी तुम डूबकर मर जाते तो ? ऐसा साहस करना योग्य नहीं !
लडका : साहस एक गुण है । साहसी होना ही चाहिए । जीवन में विघ्न-संकट आएंगे, उनका सामना करने के लिए और उनपर विजय प्राप्त करने के लिए साहस आवश्यक है । अभी से साहसी नहीं बनूंगा, तो जीवन में बडे-बडे काम कैसे कर पाऊंगा ?
लोग : ऐसे समयपर तैरने क्यों आए हो ? दोपहर में क्यों नहीं आते ?
लडका : मैं तैरने के लिए नदी में नहीं आया हूं । मैं तो पाठशाला जा रहा हूं ।
लोग : नाव में बैठकर जाओ !
लडका : प्रतिदिन चार पैसे लागते है । मुझे मेरे गरीब माता-पितापर बोझ नहीं बनना है । मुझे अपने पैरोंपर खडा होना है । यदि मेरा खर्च बढ गया, तो माता-पिता की चिंता बढेगी । उन्हें घर चलाने में कठिनाई होगी ।
लोग उसकी ओर आदर से देखते ही रह गए । वही लडका आगे जाकर भारत का प्रधानमंत्री बना । कौन था वह बालक ? वे थे लाल बहादुर शास्त्री । इतने बडे पदपर होते हुए भी उनमें सच्चाई, निर्मलता, प्रामाणिकता, साहस, साधापन, देशप्रेम इत्यादि गुण थे । वे सदाचार के जीवित उदाहरण थे । ऐसे महापुरुष अल्प काल राज्य करनेपर भी जनतापर अपना प्रभाव छोड जाते हैं ।’
– प.पू. संत श्री आसारामजी महाराज (तू गुलाब होकर महक)