मित्रो, हम दूरदर्शनपर अनेक मालिकाएं देखते हैं । उसमें शक्तिमान जैसी कोई कल्पित व्यक्तिरेखा दिखाई जाती है । वह देखकर हमें लगता है कि हम भी ऐसे शक्तिमान बनें । कई बच्चे इन व्यक्तिरेखाओं को सही मानकर वैसे कृत्य करने का प्रयास करते हैं; किंतु यह सब झूठा तथा काल्पनिक होता है । इनसे अपने देवता बहुत अधिक शक्तिशाली तथा सर्वांग आदर्श हैं । हनुमान बहुत शक्तिशाली थे । उन्होंने केवल एक हाथपर द्रोणागिरि पर्वत उठाया था, तथा समुद्र के ऊपर से उडान भरकर लंका में प्रवेश किया था । मित्रो, हमें ऐसे सर्वशक्तिशाली हनुमान जैसा बनना अच्छा लगेगा या झूठी व्यक्तिरेखा के रूप में शक्तिमान एवं स्पाइडरमैन बनना अच्छा लगेगा ?
आपके मन में यह प्रश्न आया होगा कि हनुमान इतने शक्तिशाली कैसे ? इसका उत्तर है, `हनुमान ने श्रीराम की उपासना की’ । भक्ति से ही शक्ति मिलती है । यदि हम भक्ति करें, तो हम भी हनुमान जैसे शक्तिशाली बनेंगे । विद्यार्थी मित्रो, हमें सर्वशक्तिशाली तथा महापराक्रमी होने की इच्छा है ना ? हम भी हनुमान का आदर्श अपने समक्ष रखकर राष्ट्र तथा धर्म की रक्षा करने हेतु सिद्ध होते हैं । आज हम हनुमान जयंती के अवसरपर सर्वशक्तिशाली हनुमान का जन्म तथा अन्य जानकारी प्राप्त कर समझ लेते हैं, उसी प्रकार किन गुणों के कारण वह भगवान श्रीराम के चहेते तथा परमभक्त बने, यह भी जान लेते हैं ।
१. मारुति के जन्म का इतिहास तथा उन्हें हनुमान नाम प्राप्त होने का कारण
राजा दशरथ ने पुत्र की प्राप्ति हेतु यज्ञ किया था । यज्ञ से अग्निदेव प्रकट हुए तथा प्रसन्न होकर राजा दशरथ की रानियों को पायस अर्थात खीर का प्रसाद दिया । राजा दशरथ की रानियों समान तप करनेवाली अंजनी को अर्थात मारुति की माताजी को भी प्रसाद प्राप्त हुआ । अत: अंजनी को मारुति जैसा पुत्र प्राप्त हुआ । उस दिन चैत्र पूर्णिमा थी । वह दिन हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है । मारुति ने जन्म के समय ही उदीयमान सूरज देखा तथा उसे फल मानकर, उन्होंने सूर्य की दिशा में उडान भरी । उस समय सूर्य को निगलने हेतु राहु आया था । इंद्रदेव को लगा मारुति ही राहु है, अत: उन्होंने मारुति की ओर वङ्का फेंका । वह मारुति की ठोढीपर लगा तथा उनकी ठोढी कट गई । तबसे उन्हें हनुमान नाम प्राप्त हुआ ।
२. कार्य तथा विशेषताएं !
२ अ. महापराक्रमी : हनुमंत ने जंबू, माली, अक्ष, धूम्राक्ष, निकुंभ जैसे बडेबडे वीरों का नाश किया । उन्होंने रावण को भी बेहोश किया । समुद्र के ऊपर से उडान भरकर लंका दहन किया तथा द्रोणागिरी पर्वत भी उठा लाया । मित्रो, इन सब बातों से हमें पता चलता है कि मारुति कितने पराक्रमी थे ।
२ आ. निस्सीम भक्त : मित्रो, मारुति केवल पराक्रमी ही नहीं थे , अपितु वे भगवान श्रीराम के परम भक्त भी थे । भगवान के लिए प्राण देने की उनकी सिद्धता थी वह निरंतर भगवान का नामस्मरण करते थे । भगवान के नाम में ही शक्ति होती है, यह बात वह जानते थे । आओ, हम भी निरंतर नामस्मरण कर के भगवान के भक्त बनते हैं तथा भगवान से शक्ति प्राप्त करते हैं । मारुति को भगवान की सेवा के आगे सब तुच्छ लगता था । ऐसा भक्त ही भगवान को अच्छा लगता है । हमें भी मारुति जैसा भक्त बनने का प्रयास करना चाहिए ।
२ इ. अखंड साधना : जब युद्ध होते रहता था, तब मारुति थोडी देर अलग बैठकर ध्यान लगाते थे तथा हर पल भगवान का स्मरण करते रहते थे ।
२ ई. बुदि्धमान : मारुति सभी व्याकरण सूत्र जानते थे । उन्हें ग्यारहवां व्याकरणकार माना जाता है । वह इतने बुदि्धमान कैसे थे ? मित्रो, जो भक्ति करते हैं, उनकी बुदि्ध सात्ति्वक होती है । आजसे हम भी मारुति जैसी भक्ति करके बुदि्धमान बनने का प्रयास करें ।
२ उ. जितेंद्रिय : मारुति को अपनी इंद्रियोंपर नियंत्रण था । सीतामाता को ढूंढने हेतु वह लंका गए । वहां उन्होंने राक्षस कुल की अनेक स्त्रीयों को देखा; किंतु उनके मन में एक भी स्त्री के प्रति क्षणभर के लिए कोई बुरा विचार नहीं आया; क्योंकि उन्होंने अपने सारे विकारोंपर नियंत्रण प्राप्त कर लिया था । मित्रो, भगवान की भक्ति करनेवाला सच्चा भक्त ही अपने विकारोंपर, अर्थात बुरे विचारोंपर नियंत्रण प्राप्त करता है । वह विकारों का दास नहीं होता । आजकल हम बहुतसी बातें सीखते हैं; किंतु अपने विकार नहीं जाते, क्योंकि हम भगवान के भक्त नहीं हैं ।
२ ऊ. भाषणकला में प्रवीण : मारुति उत्तम वक्ता थे । रावण के दरबार में उनके द्वारा भाषण देनेपर सारा दरबार आश्चर्यचकित रह गया ।
मित्रो, ऊपर दिए सारे गुण अपने में आने हेतु हम मारुति की प्रार्थना करते हैं, हे मारुतिराय, हमें तुम्हारे जैसी भक्ति करने की शक्ति तथा बुद्धि दें । आपके सर्व गुण हम में आने हेतु हमसे प्रयास होने दे, आपके चरणों में यही विनम्र प्रार्थना है ।
३. मारुति की मूर्ति का रंग सिंदूरी होने तथा उन्हें सिंदूर लगाने का कारण
३ अ. प्रभु श्रीराम के प्रति निस्सीम भक्ति का प्रतीक होने के कारण पूरे शरीरपर सिंदूर लगाना : मारुति का रंग सिंदूरी होने के पीछे एक कथा है । एक बार माता सीता ने स्नानोपरांत माथेपर सिंदूर लगाया । तब हनुमान ने उसका कारण पूछा । सीतामाता ने कहा, भगवान श्रीरामा की आयु लंबी हो; इस हेतु मैं सिंदूर लगाती हूं । मित्रो, मारुतिराय श्रीराम के निस्सीम भक्त थे । उन्होंने कहा, ऐसा करने से यदि मेरे स्वामी की आयु लंबी होती हो, तो मैं पूरे शरीरपर सिंदूर लगा लेता हूं । ऐसा कहकर उन्होंने अपने पूरे शरीरपर सिंदूर लगा लिया । प्रभु श्रीराम को जब इस बात का पता चला तो अति प्रसन्न होकर वे बोले, `मारुतिराय, तुम्हारे जैसा मेरा अन्य कोई भी भक्त नहीं । उसके उपरांत ही मारुति का रंग सिंदूरी हो गया ।
३ आ. मारुति को सिंदूर तथा तेल अर्पण करना : हनुमान द्रोणागिरि पर्वत लेकर जा रहे थे, तब भरत ने उन्हें बाण मार दिया । उससे उनके पांव में चोट लग गई तथा सिंदूर एवं तेल लगाने से वह ठीक हो गया, इसलिए हनुमान को सिंदूर लगाते हैं तथा तेल अर्पण करते हैं ।
४. मारुति के रूप
४ अ. प्रताप मारुति : एक हाथ में द्रोणागिरी पर्वत तथा दूसरे हाथमें गदा, इनका ऐसा रूप होता है । इससे मारुतिकी सर्वशक्तिमानता देखने को मिलती है ।
४ आ. दासमारुति : श्रीराम के सामने हाथ जोडकर खडे, सिर झुका हुआ तथा पूंछ भूमिपर रखी, इनका एक रूप ऐसा है । इससे हमें यह सीखना है कि हनुमान कितने नम्र हैं ।
४ इ. वीरमारुति : यह हमेशा युद्ध के लिए तत्पर रहते हैं । हमें भी इनके जैसा अन्याय के विरोध में लडना चाहिए । हनुमान जयंती के अवसरपर हम यह निश्चय करते हैं कि अन्याय के विरोध में लडने हेतु हम सदैव मारुति की तरह सिद्ध रहेंगे ।
४ ई. पंचमुखी मारुति : अनेक स्थानोंपर हम पंचमुखी मारुति की मूर्ति देखते हैं । गरुड, वराह, हयग्रीव, सिंह तथा कपिमुख, मूर्ति के ऐसे मुख होते हैं । पंचमुखी का अर्थ है, पांच दिशाओं की रक्षा करनेवाला । मारुति पूरब, पश्चिम, दकि्षण, उत्तर तथा ऊध्र्व इन पांच दिशाओं की रक्षा करते हैं ।
५. पूजाविधि
मारुति की पूजाविधि में सिंदूर ,तेल तथा रूई के पत्ते लेते हैं; क्योंकि इन वस्तुओं में महर्लोकतक देवताओं की शक्ति आर्किषत करने की क्षमता अधिक होती है ।
अब हम हनुमान जयंती के दिन किए जानेवाले पूजाविधीयों की शास्त्रीय जानकारी देनेवाला व्हीडिआे देखेंगे ।
६. पूजा करते समय करने योग्य कृत्य
अ. मारुति को अनामिका से (करांगुली के निकटकी उंगली ) सिंदूर लगाएं ।
आ. उन्हें पांच अथवा पांच की गुना में रूई के पत्ते तथा फूल अर्पण करें ।
इ. मारुति को केवडा, चमेली अथवा अंबर की दो अगरबत्तियां लेकर आरती उतारें ।
उ. पांच या पांच की गुना में परिक्रमा करें ।
ऊ. समर्थ रामदास स्वामीद्वारा श्रीराम का तेरह कोटि जप करनेपर उनके समक्ष मारुति प्रकट हुए तथा उन्होंने बताया, इस स्तोत्र का भक्तिपूर्ण पठन करनेवाला निर्भय बनेगा । मित्रो, हम भी हनुमान जयंती के अवसरपर प्रतिदिन मारुतिस्तोत्र का पठन करने का निश्चय करते हैं ।
७. सर्वशक्तिमान तथा महापराक्रमी देवता की अर्थात हनुमान की विडंबना रोकें !
७ अ. हनुमान के चित्र अंकित पुट्ठा (पैड) का उपयोग न करें ! : कुछ बच्चे जब परीक्षा देने जाते हैं तो हनुमान के चित्र अंकित पुट्ठा ( पैड ) का उपयोग करते हैं । यह करते हुए हम देवता का अवमान करते हैं । मित्रो, क्या हम ऐसा अवमान करेंगे ? ऐसा करने से पाप चढता है, अत: हम वह न करें तथा अपने मित्रों को भी ऐसा करने से रोकें । इससे हमपर हनुमान की कृपा होगी ।
७ आ. हनुमान का चित्रांकित टी शर्ट पहनना बंद करें ! : कुछ बच्चे हनुमान का चित्रांकित शर्ट पहनते हैं । यह भी अपने देवता की विडंबना है । हमें उसे रोकना चाहिए । टी शर्ट धोते समय उसपर सलवटें आती हैं, तथा हम उसे उतारकर कहीं भी रख देते हैं । इससे देवता का अवमान होता है । ऐसा करना पाप है, यह ध्यान में रखें ।
मित्रो, क्या अपने आदर्श तथा सर्वशक्तिमान देवता की विडंबना हम सह लेंगे ? नहीं ना ? तो आज से हम हनुमान की विडंबना रोकने का प्रयास करेंगे तथा यदि कोई कर रहा होगा, तो उसे भी समझाएंगे ।
आज हमें मारुति के विषय में जो जानकारी मिली, उसके विषय में कृतज्ञता व्यक्त करते हुए उस संदर्भ का हर कृत्य आचरण में लाने हेतु मारुति के पास से शक्ति मांगते हैं ।
– श्री. राजेंद्र पावसकर, सनातन संकुल, देवद, पनवेल.