१. वृक्ष काटने से एवं अन्य समस्याओं के कारण वातावरण में परिवर्तन हुआ ।
२. कारखाने से निकलनेवाला रासायनिक कचरा, मैल, गंदगी और ठोस कचरे के कारण नदी-नाले, भूमि के पानी में घातक प्रदूषण हुआ है । दिल्ली में बडी संख्या में मैला यमुना नदी में फेंका जाता है ।
३. ‘बढती लोकसंख्या के कारण घरेलू, गंदापानीr, साबुनयुक्त, तेलयुक्त,सेंद्रीय-असेंद्रीय पदार्थ ऐसे प्रकार के पानी बडे प्रमाण में नदियां, नालोंद्वारा सीधे समुद्र में आते हैं । इस कारण होनेवाले जलप्रदूषण से जलचर एवं जैविक विविधताओंपर बडे प्रमाण में दुष्परिणाम हो रहा है ।’ – श्री. भीमराव गमरे,अंधेरी, मुंबई. (साप्ताहिक शोधन २१-२७ जनवरी २०११)
४. ‘मुंबई में के अनेक तालाब अतिक्रमण कर पाट दिए हैं, और तालाबों में कचरा, प्लास्टिक की थैलियां, पानी की बोतलों का अतिक्रमण हुआ है । –(साप्ताहिक शोधन)
अ. दूषित जलसंचय से रोग होना
१. भूमि के पानी की शुद्धता का प्रमाण अल्प होकर नायट्रेट, पोटेशियम एवं फॉस्फेट का प्रमाण बढते हुए दिखाई दिया । भू-गर्भ में के पानी में फ्लोराईड का प्रमाण अधिक होने के कारण देश के १३ राज्यों में ५० लाख लोगों को हड्डियों की जीर्णता का रोग है ।
२. पीने के पानी में विष्ठा के जीवाणुओं के कारण रोग फैलते हैं ! : अनेक नगरपालिकाओं की जलवाहिनियां गटर एवं नाले के साथ लगकर झोपडपट्टी विभाग में पानी की आपूर्ति करते हैं ।‘महापालिका से शहरभर में लिया पानी २८ सहस्त्र ६१० नमूनों में से ३० प्रतिशत, अर्थात् पूरे ८ सहस्त्र ५५१ नमूने पीने योग्य नहीं थे । ८११ नमूनों में केवल विष्ठा में मिलनेवाला ‘ई. कोलाई’ यह जीवाणु मिला । इसके अतिरिक्तपीलिया, अतिसार एवं अन्य पेट के रोगों को आमंत्रण देनेवाले जिवाणु मुंबई के पानी में हैं ।
इसका अर्थ, नाले उसीप्रकार नालों का पानी, पीने के पानी में मिल जाता है ।आज भी लाखों मुंबईवासी खुले में मलविसर्जन करते हैं । पानी के बडे और छोटे नलों में जंग लगी है । कुछ नल जानबूझकर फोड दिए जाते हैं । ऐसी स्थिति में मुंबईवासी वर्षभर पीलिया अथवा पेट के विकारों से ग्रस्त होकर रोगियों से चिकित्सालय भर जाएं, इसमें आश्चर्य नहीं ।
– दैनिक महाराष्ट्र टाइम्स,२८.२.२०११
आ. उपाय
१. पर्यावरण की सुरक्षा की ओर गत ५० वर्ष अनदेखा कर सैकडों नदियां प्रदूषित होने के लिए उत्तरदायी राजकर्ताओं को कडा दंड दें । यहां मुठा नदी का पानी अत्यंत ही प्रदूषित हो गया है । उसका एक बडे गटर में रूपांतर होने का दृश्य विमानतल से आते समय दिखाई दिया । नदी का पानी इतना प्रदूषित क्यों हो रहा है, इसका गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है !’ – जयराम रमेश, केंद्रीय वन तथा पर्यावरण मंत्री, काँग्रेस.’
२. पवित्र नदियों का प्रदूषण करना, यह धर्मशास्त्र के अनुसार महापाप है, यहध्यान में रखकर धर्माचरण करना ! : `कृष्णा नदी सहस्रों वर्षों से हम भारतीयों की परम पवित्र नदी है । पुराण में उसकी महिमा बताई है । कृष्णानदी में कुल्ला करना, साबुन लगाकर स्नान करना, गरारे करना, बर्तन धोना एवं गंदगी फेंकना, यह हिंदु के धर्मशास्त्र के अनुसार महापाप है । उस परमपवित्र कृष्णा में गांव के गटर की गंदगी आती है । शक्कर के कारखानों की संपूर्ण गंदगी फेंकी जाती है । पानी दूषित हो गया है । हमारी धर्मभावना दुखाई जाती हैं ।शास्त्र के अनुसार ‘कृष्णा की पवित्रता रखी जाएगी’, ऐसा प्रत्येक का आचरण होना चाहिए । कृष्णा नदी को अपवित्र करनेवाले को कठोर दंड होना चाहिए ।’- गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी
इ. जल के अभाव की समस्या और उपाय
५० वर्षों में हुई लोकसंख्या में वृद्धि के कारण पानी की मांग बढ गई है इससे पानी में वृद्धि के कारण पानी की मांग बढ जाने के कारण पर्याप्ति अल्प होती है ।आज पानी के कारण राज्यों में आपसी झगडे होते हैं । पानी की समस्या सुलझाने के लिए आंतरराज्य नदियों की जोडना चाहिए; कारण उत्तर प्रदेश की यमुना, गंगा नदियों में १२ महीने पानी होता है । वह पानी यदि दक्षिण भारत की नदियों से जोडी जाएं, तो बहुत सी समस्याएं दूर हो सकती हैं ।