१. दूसरे कक्ष से बजी दूरभाष की घंटी ठीक से सुनाई न देना, एक ही समयपरचार व्यक्ति बोलते समय उनका संभाषण ठीक से सुनाई न देना, यह बहरेपन का ही एक प्रकार है । मुंबई, पुणे समान शहरों में यह अनेक संदर्भ में दिखाई देता है। विवाह, शोभायात्रा, समारोह इत्यादि में ध्वनिवर्धक का उपयोग अथवा पटाखों के कारण हमारी श्रवणयंत्रणा बिगडती है ।
२. यातायात पुलिस में ८० प्रतिशत पुलिस कुछ प्रमाण में बहरे क्यों होते हैं,इसका उत्तर ध्वनिप्रदूषण है । – डॉ. यशवंत ओक (महाराष्ट्र टाईम्स)
३. ऊंचे स्वर में लगाए जानेवाले दूरदर्शनसंच, आकाशवाणी, उत्सव एवं त्यौहार इत्यादि के निमित्त लगाए जानेवाले ध्वनिवर्धक, कर्णकर्कश बजनेवाले भोंगे,इतना ही नहीं, अपितु सार्वजनिक स्थानोंपर चलनेवाले और त्यौहारों के निमित्त लगाए गए ऊंचे स्वर के संभाषण के कारण बडे प्रमाण में ध्वनिप्रदूषण होता है ।
– प.पू. पांडे महाराज
ध्वनिप्रदूषण टालने के लिए प्रशासन को कठोर भूमिका और नागरिकों को जागरूकता दिखानी आवश्यक !
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में दूसरे को शांति से जीने के अधिकार की निश्चिंतता अंतर्भूत है । आपके विचार सुनने के लिए ध्वनिक्षेपक की अनिवार्यता आप नहींकर सकते । सर्वोच्च न्यायालयने यह निर्विवादरूप से ‘बुराबाजार फायर वक्र्स’अभियोग में मान्य किया है कि, ‘निद्रा का अधिकार मूलभूत अधिकार है ।’प्रशासनने ध्वनिप्रदूषण के विषय में कठोर कार्यवाही कार्यान्वित करने की भूमिकालेनी चाहिए, और नागरिकों को आवश्यक जागरुकता दिखाकर शांति से जीवनयापन करने के अधिकार का संरक्षण हेतु सिद्ध रहना चाहिए ।’