१. गुरु का महत्त्व और ‘गुरु’ शब्द का अर्थ
अपने देश की विशेषता अर्थात् गुरु-शिष्य परंपरा । गुरु ही हमें अज्ञान से बाहर निकालते हैं । शिक्षक ये अपने गुरु ही हैं । इस कारण हमें गुरुपूर्णिमा के दिन ही ‘शिक्षकदिन’ मनाकर उनके चरणों में कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए । प्रथम हम ‘गुरु’ इस शब्द का अर्थ समझ लेते हैं । ‘गु’ अर्थात् अंधकार और ‘रु’ अर्थात् नष्ट करना ।’ गुरु हमारे जीवन के विकारोंका अज्ञान दूर कर आनंमय जीवनयापन कैंसे करें, वह हमें सिखाता है ।
२. मनुष्य के जीवन में तीन गुरु !
२ अ. हमपर विविध संस्कार कर हमें समाज से एकरूप होना सीखानेवाले मां-बाप ही हमारे प्रथम गुरु !
बचपन में मां-पिताजी हमें हर बात सीखाते हैं । उचित क्या और अनुचित क्या है, इसका भान कर देते हैं । साथ ही हमें योग्य आचरण करना सीखाते हैं । उदा.
१. सुबह शीघ्र उठना, भूमि को वंदन करना, ‘कराग्रे वसते लक्ष्मी’ यह श्लोक पठन करना ।
२. बडोंको नमस्कार क्यों और कैसे करें?
३. शामको ‘शुभंकरोती’ कहना, भगवान के आगे दीपक जलाना; क्योंकी दीपक अंधःकार नष्ट करता है ।
४. मित्रों को मिलने के पश्चात नमस्कार करें; कारण प्रत्येक व्यक्ति में ईश्वर होता है ।
५. साथ ही हमारे घर में कोई मेहमान आए, तो उनका स्वागत ईश्वरसमान करें ।
ऐसी सभी बातें मां-पिताजी हमें सीखाते हैं, अर्थात् हमारे प्रथम गुरु मां-पिताजी हैं; अतएव हमें उनका सम्मान करना चाहिए और प्रतिदिन उन्हें नमस्कार करना चाहिए । अब बताइए कि, आपमें से कितने बच्चे अपने मां-पिताजी को प्रतिदिन नमस्कार करते हैं ? आज हम निश्चय करेंगे कि,‘मां-पिताजी को प्रतिदिन नमस्कार करेंगे ।’ यही उनके प्रति वास्तविक कृतज्ञता है ।
२ आ. हमें अनेक बातें सीखाकर सभी अंगों से परिपूर्ण करनेवाले शिक्षक, ही हमारे दूसरे गुरु !
वास्तव में हमें शिक्षकदिन गुरुपूर्णिमा के दिन मनाना चाहिए और इस दिन उन्हें भावपूर्ण नमस्कार कर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए । गुरु अर्थात् हमारे शिक्षक और शिष्य अर्थात् हम होते हैं; अत एव हमें इसी दिन शिक्षकदिन मनाना चाहिए ।
शिक्षक हमें अनेक विषयों का ज्ञान देते हैं । वे इतिहास सीखाते हैं । उससे वे हमारा राष्ट्राभिमान जागृत करते हैं । ‘हमें हमारे लिए नहीं, अपितु राष्ट्र हेतु जीना है ’ ऐसा व्यापक विचार वे हमें प्रदान करते हैं । भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव इत्यादि क्रांतिकारकोंने राष्ट्र हेतु प्राणार्पण किया, उनके अनुसार हमें त्याग करना चाहिए । ‘त्याग ही हमारे जीवन का आधार है’, यह हमें शिक्षक बताते हैं । त्यागी बच्चे ही राष्ट्र की रक्षा कर सकते हैं । इतिहासद्वारा हमारे आदर्श निश्चित होते हैं, उदा. छत्रपति शिवाजी महाराज, वीर सावरकर ही हमारे वास्तविक आदर्श हैं । उनके अनुसार हमें त्यागी वृत्ति का बनना चाहिए ।
२ इ. विविध विषय निःस्वार्थी वृत्ति से सीखकर हमें विकास के मार्गपर ले जानेवाले हमारे शिक्षक ! शिक्षक हमें मराठी भाषा सीखाते हैं । उसकेद्वारा वे हम में मातृभाषा का अभिमान जागृत करते हैं और रामायण, महाभारत, दासबोध जैसे ग्रंथों का अभ्यास करने में रस भी निर्माण करते हैं । उससे वे हमें हमारे संतों की पहचान करा देते हैं और ‘उनके समान हम बनें’, इसके लिए प्रयास भी करते हैं । साथ ही वे हमें समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र जैसे विषय सीखाते हैं । हम जिस समाज में रहते हैं , उस समाज का ऋण हमपर रहता है, इस बात का भान वे करा देते हैं । अर्थशास्त्र द्वारा योग्य मार्ग से (धर्म से) पैसा कमाएं और अयोग्य मार्ग से(अधर्म से) पैसा ना कमाएं, यह भी सीखाते हैं । आज हम देखते हैं कि, संपूर्ण देश भ्रष्टाचार से पीडित है । परंतु इनमें परिवर्तन करना है, ऐसा ही शिक्षकों को लगता है ।
२ ई. ऐसे महान शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन अर्थात् गुरुपूर्णिमा !विद्यार्थी मित्रो, अब आपके ध्यान में आया होगा कि, ‘जीवन के विविध मूल्य शिक्षक हमें सीखाते हैं और वे कृत्य में लाने हेतु आवश्यकता के अनुसार दंड भी देते हैं । इसके पीछे उनका शुद्ध उद्देश होता है कि, हम आदर्श जीवन जीएं ।’ कुछ बच्चे शिक्षकों की चेष्टा करते हैं, यह पाप है । इसलिए हमें उनकी क्षमा मांगकर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए ।
३. आध्यात्मिक गुरु
३ अ. आध्यात्मिक गुरुद्वारा हमारे जीवन का वास्तविक अर्थ विशद करना : आजतक हमने इस भौतिक विश्व के संदर्भ में मार्गदर्शन करनेवाले गुरु देखे । अब हम आध्यात्मिक गुरु कैसे होते हैं, यह देखेंगे । तीसरे गुरु अर्थात् आध्यात्मिक गुरु ! प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में गुरु आते हैं । जैसे श्रीकृष्ण-अर्जुन, श्री रामकृष्ण परमहंस-स्वामी विवेकानंद, समर्थ रामदासस्वामी-शिवाजी महाराज ऐसी गुरु-शिष्य परंपरा ही हमारे देश की विशेषता है ।
आध्यात्मिक गुरु हमें अपनी वास्तविक पहचान कर देते हैं । हमारे अज्ञान के कारण हमें ऐसा लगता है कि, मैं एक व्यक्ति हूं; परंतु वास्तविक रूपसे हम व्यक्ति न होकर आत्मा हैं, अर्थात् ईश्वर ही हममें रहकर प्रत्येक कृत्य करता है; परंतु अहंकाररूपी अज्ञान के कारण हमें लगता है कि, ‘हम प्रत्येक कृत्य करते हैं।’ सोचो, आत्मा हम में से निकल गई, तो हम क्या कर सकते हैं ? तब ईश्वर ही सभी कुछ करता है । वह अन्न का पचन करता है, वही रक्त बनाता है, इसका भान हमें गुरु कर देते हैं ।
३ आ. आनंदी होने का सरल मार्ग, अर्थात् अपने हाथों से हुई प्रत्येक चूक के मूल दोषों को ढूंढकर उसे दूर करने का प्रयत्न करना : अहंकार के कारण व्यक्ति स्वयं को ईश्वर से अलग समझते हैं, तथा जीवन में सतत दुःखी रहता है । इसलिए यदि हमें जीवन में आध्यात्मिक गुरु का लाभ चाहिए, तो हमें प्रार्थना, कृतज्ञता एवं नामजप अधिकाधिक करना चाहिए । कोई भी कृत्य करने से पूर्व सर्वप्रथम कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए । साथ ही कृत्य उत्तम रीति से हो, इस कारण प्रार्थना करें । हमपर गुरु की कृपा हो; इसलिए प्रतिदिन हमसे होनेवाली चूकों को लिखकर उसका मूल दोष ढूंढें । इस कारण हमारे दोष शीघ्र दूर होकर हम में ईशवरीय गुण आएंगें तथा हम आनंदित रह सकते हैं । ’
– श्री. राजेंद्र पावसकर (गुरुजी), देवद, पनवेल.