मथुरा
मथुरा जिले में चार तहसीलें हैं – मांट, छाता, महावन और मथुरा । इसके दस विकास खंड हैं – नंदगांव, छाता, चौमुहां, गोवर्धन, मथुरा, फरह, नौहझील, मांट, राया और बलदेव । जिले का भौगोलिक क्षेत्रफल ३३२९.४ वर्ग कि.मी. है । प्राचीन काल में यह शूरसेन देश की राजधानी थी । वाल्मीकि रामायण में मथुरा को मधुपुर या मधुदानव का नगर कहा गया है ।
मंदिर, कुंड, जंगल और घाटों के शहर मथुरा के आसपास बसे स्थानों में प्रमुख हैं, गोकुल, वृंदावन, ब्रज मंडल, गोवर्धन पर्वत, बरसाना, नंदगांव और यमुना के घाट तथा जंगल । मथुरा और उसके आसपास के प्रसिद्ध मंदिर हैं – कृष्ण जन्मभूमि मंदिर, सती बुर्ज, आदिवराह मंदिर, कंकाली देवी, कटरा केशवदेव मंदिर, कालिन्दीश्वर महादेव, दाऊजी मंदिर, दीर्घ विष्णु मंदिर, द्वारिकाधीश मंदिर, पद्मनाभजी का मंदिर, पीपलेश्वर महादेव, बलदाऊजी, श्रीनाथजी भंडार आदि ।
प्रमुख कुंड में पोखरा का कुंड और शिवताल का महत्व ही अधिक है । प्रमुख घाटों में ब्रह्मांड घाट, विश्राम घाट और यमुना के घाट की सुंदरता देखते ही बनती है । इसके अलावा मथुरा जिले में १२ वन थे- मधुवन, तालवन, कुमुदवन, काम्यवन, बहुलावन, भद्रवन, खदिरवन, महावन, लौहजंघवन, बिल्ववन, भांडीरवन एवं वृंदावन । इसके साथ २४ उपवन भी थे ।
मथुरा से वृंदावन की ओर जानेपर पागलबाबा का मंदिर, बां के बिहारी मंदिर, शांतिकुंज, बिडला मंदिर और राधावल्लभ मंदिर देखने योग्य हैं । मथुरा से गोकुल की ओर ठकुरानी घाट, नवनीतप्रियाजी का मंदिर, रमण रेती, ८४ खंबे, बलदेव आदि दर्शनीय स्थल हैं ।
मथुरा से गोवर्धन की ओर गोवर्धन, जतीपुरा, बरसाना, नंदगांव, कामा, कामवन आदि स्थल देखने योग्य हैं । मथुरामें प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं – कृष्ण जन्मभूमि, द्वारिकाधीश मंदिर और विश्राम घाट ।
यमुना में नौका विहार के साथ प्रातः एवं सांयकाल में विश्राम घाटपर होनेवाली यमुनाजी की आरती भी दर्शनीय है ।
कृष्णजन्मभूमि
मथुरा में सबसे महत्वपूर्ण स्थान है कृष्णजन्मभूमि । उक्त स्थानपर सबसे पहले कृष्ण के प्रपोत्रने एक मंदिर बनवाया था, जहां पहले कारागृह हुआ करता था । कालांतर में यह मंदिर बहुत बार नष्ट किया गया । पहले बौद्ध काल में फिर मुगल काल में और फिर अंग्रेजों के काल में मुहम्मद गजनीने इसे तोडा था । यहां पुन: मंदिर बनाया गया जिसे सिकंदर लोदी के शासनकाल में नष्ट कर दिया गया ।
फिर जहांगीर के शासन काल में पुन: इस मंदिर का निर्माण हुआ । १६६९ ई. में औरंगजेबने पुन: यह मंदिर नष्टकर दिया और इसकी जगह एक ईदगाह बनवा दी जो आज भी विद्यमान है । इसी के पीछे फिर मंदिर बनाया गया । यहीं एक कुंड है जिसे पोखरा कुंड कहते हैं । मान्यता है कि वहीं पर भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था । हालांकि कारागृहके क्षेत्रमें अब मस्जिद, मंदिर और पोखरा (कुंड) तीनों ही स्थित है।
प्राचीन केशव मंदिर के स्थान को केशवकटरा कहते हैं । खुदाई होने से यहां बहुत-सी ऐतिहासिक वस्तुएं प्राप्त हुई थीं । इस मंदिर के साथ गोविंदजी का मंदिर, किशोरीरमणजी का मंदिर, वसुदेव घाटपर गोवद्र्धननाथजी का मंदिर, उदयपुरवाली रानी का मदनमोहनजी का मंदिर, विहारीजी का मंदिर, रायगढवासी रायसे का बनवाया हुआ मदनमोहनजी का मंदिर, उन्नाव की रानी श्यामकुंवरी का बनाया राधेश्यामजी का मंदिर, असकुण्डा घाट पर हनुमानजी, नृसिंहजी, वाराहजी, गणेशजी के मंदिर आदि हैं ।
विश्राम घाट
विश्राम घाट बहुत ही सुंदर स्थान है, मथुरा में यही प्रधान तीर्थ है । यहांपर भगवान ने कंस वध के पश्चात् विश्राम किया था । नित्य प्रातः-सायं यहां यमुनाजी की आरती होती है, जिसकी शोभा दर्शनीय है । इस घाटपर मुरलीमनोहर, कृष्ण-बलदेव, अन्नपूर्णा, धर्मराज, गोवर्धननाथ आदि कई मंदिर हैं । यहां चैत्र शुक्ल ६ (यमुना-जाम-दिवस), यमद्वितीया तथा कार्तिक शुक्ल १० (कंसवध के उपरांत) को मेला लगता है ।
गोवर्धन पर्वत
गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है । वल्लभ संप्रदाय के वैष्णवमार्गियों के लिए इस पर्वत की परिक्रमा का बहुत महत्व है। श्रीगोवर्धन पर्वत मथुरा से २२ किमी.की दूरी पर स्थित है । इस पर्वत की परिक्रमा मार्गपर स्थित आन्यौर में श्रीनाथजी प्रकट हुए थे । इस पर्वत की परिक्रमा के लिए समूचे विश्व से कृष्णभक्त, वैष्णवजन और वल्लभ संप्रदाय के लोग आते हैं । यह पूरी परिक्रमा ७ कोस अर्थात् लगभग २१ किलोमीटर है ।
मार्ग में पडनेवाले प्रमुख स्थल आन्यौर, जातिपुरा, मुखार्विंद मंदिर, राधाकुंड, कुसुम सरोवर, मानसी गंगा, गोविंद कुंड, पूंछरी का लौठा, दानघाटी इत्यादि हैं । गोवर्धन पर्वतपर सुरभी गाय, ऐरावत हाथी तथा एक शिलापर भगवान कृष्ण के चरण चिन्ह हैं ।
जतीपुरा- गोवर्धन पर्वत परिक्रमा का प्रारंभ वैष्णवजन जातिपुरा से और सामान्यजन मानसी गंगा से करते हैं और पुन: वहीं पहुंच जाते हैं।
पागल बाबा का मंदिर
पागल बाबा का मंदिर पागल बाबाने बनवाया था । सफेद संगमरमर के ढांचेपर बना यह विशाल मंदिर अति आकर्षक है । मंदिर का मुख्य आकर्षण है यहांपर होनेवाला कठपुतली नृत्य । इसकी एक और विशेषता है कि मंदिर के सबसे ऊपरवाले माले से शहर का अति सुंदर दृश्य दिखाई देता है । इस मंदिर को उनके आनुयाइयोंद्वारा होली व जन्माष्टमीपर विशेष रूप से सजाया जाता है ।
गोकुल
यमुना नदी के एक किनारे मथुरा है तो दूसरे किनारे गोकुल (नंदगांव) जहां श्रीकृष्ण भगवान का लालन-पालन हुआ था । यही कृष्णने अपनी बाल लीलाएं भी की थीं । गोकुल में नंद बाबा का वह घर आज भी जतन कर रखा गया है जहां कृष्ण का बाल्य काल बीता, इसके साथ पूतना वध, माखन चोरी का स्थान गोकुल में देखने योग्य हैं । मथुरा से गोकुल सडक मार्ग से पहुंचने में केवल १५ से २० मिनट लगते हैं ।
वृंदावन
मथुरा से १५ किमी. दूरी पर है वृंदावन । ‘वृंदा’का अर्थ होता है तुलसी, जो कृष्ण को प्रिय है और वृंदावन अर्थात् तुलसी का जंगल । यह कृष्ण की रासलीला का स्थल है, वृंदावन के कण-कण में कृष्ण और राधा का प्रेम बसा है । यही वह पावन माटी है जहां कृष्णने महारास खेला था, जिसे देखने स्वर्ग से देवता धरती पर आते थे । कहा जाता है कि यहां आज भी कृष्ण रासलीला खेलने आते हैं ।
बरसाना
मथुरा से ४२ किमी. की दूरी पर है बरसाना, जो श्रीराधाजी का गांव है । यहां भी राधा कृष्ण की कई निशानियां हैं, जैसे राधाजी का जन्म स्थल, कृष्ण राधा का मिलन स्थल आदि । मथुरा में इसके साथ देखने योग्य बहुत सारे स्थान हैं ।