भारत की सर्वाधिक प्राचीन और पवित्र नदियों में गंगा के समकक्ष ही यमुना की गणना की जाती है । भगवान कृष्ण की लीलाओं की साक्षी रही यह नदी ब्रज संस्कृति की संवाहक है । भारतवासियों के लिए यह केवल एक नदी नहीं है, भारतीय संस्कृति में इसे मां का स्थान दिया गया है ।
यमुना नदी का उद्गम हिमालय के पश्चिमी गढवाल क्षेत्र में स्थित यमुनोत्रीसे हुआ है । हिंदु धर्म के चार धामों में यमुनोत्री का भी स्थान है ।
यमुना नदी की तीर्थस्थली यमुनोत्री हिमालय की सुंदर घाटियों में स्थित है । यमुना नदी का उद्गम कालिंद नामक पर्वत से हुआ है । हिमालय में पश्चिम गढवाल के हिम से ढके बंदरपुच्छ जो कि भूमि से २०,७३१ फुट ऊंचा है, के उत्तर-पश्चिम में कालिंद पर्वत है । इसी पर्वत से यमुना नदी का उद्गम हुआ है । कालिंद पर्वत से नदी का उद्गम होने के कारण से ही लोग इसे कालिंदी भी कहते हैं ।
यमुना नदी का वास्तविक स्त्रोत कालिंद पर्वत के ऊपर हिम की एक जमी हुई झील और हिमनद चंपासर ग्लेशियर है । यह ग्लेशियर समुद्र तल से ४४२१ मीटर की ऊंचाईपर स्थित है । इसी ग्लेशियर से यमुना नदी निकलती है और ऊंचे-नीचे, पथरीले रास्तोंपर इठलाती, बलखाती हुई पर्वत से नीचे उतरती है ।
यमुना नदी के इस शुद्ध निर्मल जल और स्वच्छंद प्रवाह के दर्शन करने अनेक तीर्थयात्री और पर्यटक हर वर्ष हजारों की संख्या में यमुनोत्री धाम पहुंचते हैं । भक्तिभाव से यमुना नदी के दर्शन करने आनेवालों के साथ-साथ रूचि रखनेवाले और प्रकृतिप्रेमियों के लिए यह स्थान किसी स्वर्ग से अल्प नहीं है ।
तीर्थयात्री और पर्यटक देवी यमुना के मंदिर तक ही आते हैं । यह मंदिर पहाडीपर वास्तविक ग्लेशियर से कुछ नीचे स्थित है । इस मंदिर तक पहुंचने का मार्ग अति खूबसूरत है । इस मंदिर की चढाई करते हुए आस-पास की हिमाच्छादित पहाडियों के मनोहारी दृश्य यात्रियों की सर्व थकान को हर लेते हैं । जो लोग पहाडीपर चढने में समर्थ नहीं होते उनके लिए यहां टट्टू और पालकी की सुविधा उपलब्ध है ।