एक समय अंग्रेजों का राज्य था । एक स्थानपर धार्मिक कार्यक्रम था । कार्यक्रम समाप्त होनेपर पुरूष मंडली बाहर निकली । महिलाएं भी बाहर निकल रहीं थी । उसी समय दो गोरे आरक्षक मद्य पीकर महिलाओंके व्दार के सामने आकर खडे हो गए । अनर्गल बातें कहते हुए उन्होंने महिलाओं का मार्ग रोका । उस कारण उन महिलाओं को बाहर निकलते नहीं बन रहा था । उनके घर के लोग उसी व्दार के सामने उनकी राह देख रहे थे; परंतु उन गोरे आरक्षकों को रास्ता छोडने के लिए कहने का किसीने भी साहस नहीं किया । बहुत समय ऐसा ही निकल गया ।
उसी समय मार्ग से दो मराठी युवक जा रहे थे । दरवाजे के बाहर भीड देखकर वहां क्या चल रहा है, इसकी उन्होंने पुछताछ की । जब उन्हें परिस्थिति का ज्ञान हुआ, तब उनमें से एक युवक ने अपने मित्र से कहा, ‘‘चलो, हम मिलकर उन महिलाओं की मदत करें ।’’ उसपर मित्रने कहा, ‘‘माधव, क्यों बेकार की झंझट अपने पिछे लगा ले रहे हो ?’’ इतना कहकर वह मित्र चला भी गया । लेकिन माधव से रहा नहीं गया । वह पुरूषों की भीड में जाकर सबको उद्देशित कर बोला, ‘‘हटाओ न उन गोरे आरक्षकोंको !’’ सबको उसका कहना उचित लग रहा था; परंतु उनके सामने प्रश्न था कि ‘कौन आगे आएगा ?’ इसीलिए सभी चूप थे यह माधव के ध्यान में आया । ‘चलो मैं आगे बढता हूं’ ऐसा कहकर माधव उन आरक्षकों के पास जाने लगा । धीरे-धीरे लोग भी आगे सरकने लगे । आरक्षकों के पास जाकर माधवने उन आरक्षकों को धमकाकर कहा, ‘‘यहां से चले जाओ । नहीं जाओगे तो हमारा जत्था देख रहें हो ना ?’’ उसकी कडी आवाज और त्वेष देखकर वे आरक्षक घबराए और वहांसे भाग गए ।
लोगोंने माधव को धन्यवाद दिए । माधवने कहा, ‘‘आप इतने लोग होकर भी उन दोनों को घबरा गए ? हमनें हमारी संगठीत शक्ति दिखाई नहीं तो वे हमारी कमियों का लाभ ही लेंगे । यदि एकता का बल दिखाया जाए, तो उनका क्या सामथ्र्य है ? सामनेवाले की शक्ति को घबराने की अपेक्षा उन्हें अपनी शक्ति दिखाए ।’’
यही युवक माधव आगे चलकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संगठन का अनेक वर्ष सरसंचालक था ।
बालमित्रो, इस कथाद्वारा एकता का सामर्थ्य ध्यान में आया होगा । हम अकेले कुछ नहीं कर सकते; परंतु हम संगठित होनेपर निश्चितही विजयी होते हैं । कोई भी लडाई लडनी हो, तो संगठित होना आवश्यक है ।