राजकीय कैदियों की यातनाएं बंद होने के लिए ६१ दिनों के उपोषण का अग्निदिव्य कर के स्वयं को राष्ट्र के लिए समर्पित करनेवाले क्रांतीकारी जतींद्रनाथ दास !
१३ सितंबर ! वर्ष १९२९ में दोपहर १ बजे जतींद्रनाथ दास इस क्रांतीकारी ने ६१ दिनों का उपोषण कर के स्वयं के प्राण त्याग दिए । उन्हें नेताजी सुभाषचंद्र बोसजी का दायां हांथ माना जाता था । उन दिनों जतींद्रनाथ ने ३ बार कारावास भुगता है । छूटनेपर उन्होंने ‘दक्षिण कलकत्ता तरुण समिती’का निर्माण किया । परिणामतः बेंगाल ऑर्डिनन्स दंडविधान के तहत जतींद्रनाथ को पुन: कारागृह में भेजा गया । कारागृह में होनेवाले छलके निषेध के तौरपर उन्होंने ३३ दिन अन्न त्याग करनेपर उनकी रिहाई हुई ; परंतु लाहोर षड्यंत्र में उलझाकर उन्हें पुन: कारावास में भेजा गया । उस समय राजकीय बंदी को मिलनेवाले निकृष्टतम वर्तन का निषेध कर उन्होंने उपोषण चालू किया ।
उन्होंने बलपूर्वक दिया हुआ अन्न नकारा । इसीलिए सात-आठ लोग उनकी छातीपर बैठ गए । आधुनिक वैद्योंने उनकी नाक में नली घुसाई । जतीनदास खांसने लगे । इससे दूध फुफ्फूसों में जाकर उनका स्वास्थ्य बिगड गया । इस कारण आधुनिक वैद्यों को पुन: बलपूर्वक उनके गले में दूध इत्यादी डालना संभव नहीं हुआ । दिन-प्रति-दिन जतीन अशक्त होते जा रहे थे । हाथ हिलाना, पलके झपकाना मुश्किल हो गया था । अंग्रेज शासन ने उन्हें बाहर रूग्णालय में ले जाकर किसी की भी झूठी जमानत (जामीन) देकर छुडाने का निश्चय किया; परंतु जतीनदासजीने ईशारे से उसे नकारा तथा उनके कमरे के अन्य क्रांतिकारीयों ने ‘हमारे शवों परसे उन्हें ले जाना पडेगा’ ऐसी धमकी पुलिसवालों को दी। इस हाथापाईमें ही जतींद्रनाथ का हृदय रूक गया,तथा उनकी मृत्यु हो गई । दूसरों को अच्छा जीवन मिलने के लिए मृत्यु को स्वीकारनेवाला भारतमाता का त्यागी सुपुत्र ! राजकीय कैदियों की यातनाएं बंद हो, इसलिए अग्निदिव्य करनेवाला जतीन ! उसकी स्मृती भारतीयों को अखंड स्फूर्ती देती रहेगी । हमारे राष्ट्रीय स्वतंत्रता के यज्ञकुंड में ऐसे नरश्रेष्ठों की आहुती अर्पित हुई है । यह दिन विशेष सभी ने विशेषत: युवाओंने ध्यान में रखनेवाला दिन है ।
(संदर्भ – ‘उगवता दिवस’ : डॉ. वि.म. गोगाटे आणि http://saneguruji.net )