ओडिशा राज्य में कोणार्क के सूर्यमंदिर की रचना एक भव्य रथ के जैसी थी । गंग वंश के राजा नरसिंहदेव के शासनकाल में (वर्ष १२३८ से १२६४) इस मंदिर की स्थापना हुई । मंदिर के उत्तर तथा दक्षिण भाग में बडे-बडे (विशाल) पहिए थे तथा पूर्व में सात अश्व (घोडे) जोडे गए थे । इस मंदिर की रचना के लिए १,२०० शिल्पकार निरंतर १६ वर्षों तक कार्यरत रहे थे । एक अखंड चट्टान में निर्मित इस मंदिर के गुंबद का वजन १,०२० कि.ग्रा. था ! इस मंदिर के अन्य शिलाओंपर नवग्रह, हाथी, अश्व, राजसभा, चतुरंग सेना का युद्ध, योगसाधना करनेवाले योगी, देवपूजा कर रहे भक्त, गुरु-शिष्य जोडियां ऐसे असंख्य चित्र कुरेदे गए थे । ‘काला पहाड‘ नामक कुप्रसिद्ध मुसलमान सरदारने इस मंदिर को ध्वस्त किया । इस मंदिर की सूर्यमूर्ति भी नष्ट हो गई है । अब इस प्राचीन सूर्यमंदिर के केवल भगवान शेष ही देखने को मिलते हैं ।
हमारे प्राचीन मंदिर ही वास्तुकला, शिल्पकला, मूर्तिकला आदि विषयोंमें हिंदुओं की प्रगति के साक्षी हैं । उनका पुन: निर्माण करना, यह हमारा नैतिक, राष्ट्रीय तथा धार्मिक कर्तव्य है।