वर्ष १५६८ में अकबर बादशाह ने चित्तौडपर आक्रमण किया तथा बडी मात्रा में राजपूत महिला-पुरुषों की हत्या की । चित्तौडपर विजय प्राप्तकर वह वापस दिल्ली चला गया । चित्तौड की सर्व राजपूत स्त्रियों ने जोहार किया तथा आत्मबलिदान किया । उस समय मेवाड के राजा उदयसिंह युद्ध में मारे गए । उनका पुत्र महाराणा प्रताप प्रतिशोध से जल रहा था । मेवाड में महाराणा प्रताप ने अकबर के विरुद्ध धर्मयुद्ध पुकारा । वर्ष १५७२ में मेवाड राज्य के अधिपति के रूप में स्वयं का राज्याभिषेक करवाया ।
महाराणा प्रताप का नाश करने की अकबर की योजना !
इस कालावधि में अकबर ने भारत के बडे-बडे राजाओंपर विजय प्राप्त की तथा दिल्ली की मुगल सत्ता बलवान बनाई । महाराणा प्रताप एकमात्र बलवान तथा वीर राजा थे । उनसे मुगल सत्ता को भय था, यह ध्यान में आनेपर महाराणा प्रताप का नाशकर मुगल सत्ता को भयमुक्त करने का अकबर ने निश्चय किया । महाराणा प्रतापपर आक्रमण करने के लिए अकबर ने अपने दरबार के प्रमुख सेनापति मानसिंह को एक लक्ष(लाख) घुडसवार, नई बंदूकें, बाण इत्यादि शस्त्र तथा अनगिनत हाथी, घोडे, रथ तथा पैदल सेना देकर भेजा । महाराणा प्रताप के पास केवल तीन सहस्र (हजार) घुडसवारीवाले वीर योद्धा थे । महाराणा प्रताप ने विचार किया तथा अरावली पर्वत स्थित ‘हलदी घाटी’ नामक दुर्गम स्थानपर मोर्चा बांधा । मानसिंह के पास विशाल सेना थी । इसलिए उसने एक ही समय में चारों ओर से महाराणा प्रतापपर आक्रमण किया । इस आक्रमण में महाराणा प्रताप तथा उनकी सेना ने वीरतासे युद्ध किया तथा विशाल मुगल सेना को पराजित किया ।
अंतिम क्षणतक शत्रु से कडाई से जूझना
इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने मुगल सेना को इतना पीडित किया कि मुगलों ने महाराणा प्रताप का प्रतिकार नहीं किया । महाराणा प्रताप को पकडना मानसिंह के लिए संभव नहीं हुआ वह वापस दिल्ली चला गया ।
इस युद्ध के पश्चात महाराणा प्रताप ने पुनः सेना एकत्रित की तथा युद्ध की सिद्धता की । तत्पश्चात महाराणा प्रताप ने अकबर के साथ तीन बार युद्ध किया । इन तीनों युद्धों में अकबर महाराणा प्रताप को पराजित नहीं कर सका तथा उन्हें पकड भी नहीं सका । परिस्थितिवश उन्हें जंगल में रहना पडा तथा धैर्यपूर्वक अंततक शत्रु से जूझनेवाले इस वीर पुरुष का वर्ष १५९७ में बडी व्याधि के कारण अंत हुआ ।
– प्रा. सु.ग. शेवडे (भारतीय संस्कृती)