दिनभर परिश्रम करनेपर शरीर एवं मन को विश्राम की आवश्यकता होती है । इस विश्राम की प्राकृतिक अवस्था अर्थात् निद्रा । रात्रि की निद्रा उचित मात्रा में एवं सुखदायी होनेपर मस्तिष्क और नेत्रों को विश्राम मिलता है तथा मानसिक स्वास्थ्य भी उत्तम रहता है । धर्मशास्त्र में कहा गया है कि प्रत्येक को प्रात: सूर्योदय के पूर्व उठना चाहिए; परंतु आजकल अनेक बच्चे रात को पढाई करते रहते हैं अथवा दूरचित्रवाणीपर धारावाहिक अथवा चलचित्र देखते रहते हैं । इसलिए रात को देरसे सोते हैं और प्रात: ८-९ बजे उठते हैं । जो आरोग्य के लिए हानिकारक है। कहा जाता है, ‘शीघ्र सोए, शीघ्र उठे तो आयु-स्वास्थ्य एवं धनसंपत्ति मिले ।’ अर्थात्, जो शीघ्र सोकर शीघ्र उठता है, वह दीर्घायु एवं अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त कर धनवान बनता है । बालकों नियमितरूप से पर्याप्त निद्रा (साधारणतः ८ से १० घंटे) लें । इससे दिन में पढाई तथा अन्य कार्य करने के लिए आप उत्साही रहते हैं । इसके लिए निम्नलिखित बातें अवश्य करें ।
रात में जागरण करनेसे होनेवाली हानि
जागरण करने से उष्णता के विकार होते हैं एवं आंखें भी प्रभावित होती हैं ।
प्रात: शीघ्र (समयपर) उठने के लाभ
अ. प्रात: वातावरण शुद्ध, पवित्र, शांत एवं उत्साहवर्धक होता है ।
आ. इस काल में पढाई अच्छी होती है ।
इ. भगवान की पूजा-अर्चना एवं उपासना करें !
रात्रि शीघ्र सोएं
रात्रि विलंबतक दूरचित्रवाणी की मालिकाएं अथवा चित्रपट न देखें । उससे जागरण होता है । जागरण से उष्णता के विकार उत्पन्न होते हैं । आयुर्वेद के अनुसार जागरण से शरीर में वात एवं पित्त दोष बढते हैं । नेत्रों का स्वास्थ्य भी बिगड सकता है । उत्तम शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य हेतु बालकों के लिए रात्रि शीघ्र शयन करना (सोना) और प्रात: शीघ्र उठना आवश्यक है ।
निद्रा की उचित पद्धति एवं अनिष्ट शक्तियों से रक्षा हेतु करने योग्य आध्यात्मिक उपचार
१. निद्रा-कक्ष स्वच्छ एवं सुव्यवस्थित हो ।
२. सोते समय कक्ष में संपूर्ण अंधेरा न करें । गोघृत (घी) अन्यथा तिलके तेल का अथवा मीठे तेलका मंद दीया (वह संभव न हो, तो बिजलीका दीया) लगाकर सोएं ।
३. सात्त्विक उदबत्ती जलाकर उसे संपूर्ण कक्ष में घुमाएं और सिर हाने से कुछ अंतर पर रखें ।
४. शयन करने से पूर्व हाथ-पैरों को विभूति लगाएं । उसी प्रकार बिछौने के नीचे एवं बिछौनेपर थोडी अल्प-सी विभूति डालें अथवा विभूति डाला हुआ जल छिडकें ।
५. बिछौने के चारों ओर मस्तक एवं कदमों के निकट श्री गणपति और दोनों हाथों की ओर श्रीकृष्णकी नामजप-पट्टियों का मंडल बनाएं । ये नामजप-पट्टियां सुविधा के अनुसार बिछौने के नीचे अथवा बिछौनेपर रखें ।
६. दिनभर में हुए अपराध कुलदेवता / उपास्यदेवता को बताकर उनके लिए क्षमा मांगे ।
७. पीठपर अथवा पेट के बल न सोएं । संभवत: दाएं अथवा बाएं करवटपर सोएं ।
८. पूरी रात नामजप अथवा उच्च संतों के धिमी आवाज में तथा सुर में भजन लगाकर रखें ।
९. कुलदेवता / उपास्यदेवता से प्रार्थना करें, ‘मेरे सर्व ओर आपका सुरक्षा-कवच निरंतर बना रहें और निद्रा में भी मेरा नामजप होते रहने दीजिए ।’
१०. पूर्व-पश्चिम दिशा में (संभवत: पूर्व की ओर मस्तक कर) शयन करें । कभी भी दक्षिण की ओर पैर कर न सोएं । उसी प्रकार ठीक भगवान के सामने भी न शयन करें ।
११. नामजप करते हुए शयन करें । इससे हमारे आसपास देवता का सुरक्षा-कवच निर्माण होता है ।
संदर्भ : सनातन निर्मित ग्रंथ ‘ सुसंस्कार एवं उत्तम व्यवहार’