पटाखे जैसे विकृत प्रथा को नष्ट करना ही वास्तव में सच्ची एवं खरी दीपावली !

‘विद्यार्थी मित्रो, अब आप दीपावली त्योहार की प्रतीक्षा कर रहे होंगे । ‘कब परीक्षा समाप्त हो एवं हम दीपावली का आनंद मनाएं’, ऐसा आपको प्रतीत होता होगा; किंतु मित्रो, त्योहार का अर्थ है ‘हम स्वयं आनंदी रहकर अन्यों के जीवन में भी आनंद का संचार करें’ ।

१. दीपावली में आकाशदीप लगाने का महत्त्व

दीप आनंद का प्रतीक है । व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्रका जीवन आनंदमय हो, साथ ही सभी का जीवन आनंद से परिपूर्ण हो जाए; इसलिए हम आकाशदीप लगाते हैं । दीप लगाने से अंधकार का नाश होता है । ‘दीपावली के त्योहारद्वारा अन्योंको आनंद प्राप्त हो, क्या ऐसे कृत्य हम करते हैं’, हमें इसका चिंतन करना चाहिए । दुर्भाग्यवश इसका उत्तर ‘नहीं’ ही है । दीपावली के निमित्त हमारे किसी कृत्यद्वारा अन्यों को दुःख होगा, तो हम पाप के भागी होंगे । अतएव ये सब रोककर देवता की कृपा संपादन करें ।

२. पटाखों के माध्यम से होनेवाला देवता का अनादर रोकने का निश्चय करें !

दीपावली में बच्चे देवताओं के छायाचित्रवाले पटाखे फोडते हैं । देवता का छायाचित्र प्रत्यक्ष देवता ही हैं । जिस समय हम पटाखे फोडते हैं, उस समय उस छायाचित्र के टुकडे होते हैं, अर्थात हम उस देवता का अनादर ही करते हैं । श्रीलक्ष्मी के छायाचित्रवाले, साथ ही राष्ट्रभक्तों के छायाचित्रवाले पटाखे फोडना, इससे हमें पाप लगता है । इस दीपावली को हम ऐसे पटाखे खरीदेंगे ही नहीं। साथ ही ऐसे पटाखे खरीदनेवालों का प्रतिरोध कर उनका प्रबोधन करेंगे, वास्तव में यह देवता की भक्ति है । ऐसा करनेसे हमपर देवता की कृपा होगी । बच्चो, क्या हमारे माता-पिता के छायाचित्रवाले पटाखे हम फोडेंगे ? नहीं न ! देवता हम सभी की रक्षा करते हैं । हमें शक्ति एवं बुदि्ध प्रदान करते हैं; अतएव इस दीपावली को हम यह अनादर रोकने का निश्चय करें ।

३. दीवाली में ‘पटाखे फोडना’ इस प्रथा के पीछे कोई भी शास्त्रीयआधार नहीं

दीवाली को पटाखे फोडने के पीछे कोई भी शास्त्रीय आधार नहीं है । यह एक अनुचित किंतु प्रचलित प्रथा है । यह अनिष्ट एवं विकृत प्रथा हमें हर हाल में बंद करनी ही है । इसके विषय में हम चिंतन करेंगे । क्या पटाखे फोडने से अन्यों को आनंद की प्राप्ति होती है ? ऐसा बिल्कुल नहीं । तो ऐसी प्रथाओं का हम अनुकरण क्यों करें ? इसके विपरीत ऐसी प्रथाओं के कारण लोग अपने त्योहारों से त्रस्त हो गए हैं तथा त्योहार के विषय में भ्रांत धारणा बन गई है । उसे दूर करना, वास्तव में यही खरी दीपावली है । इसी कारण लोगों को धर्मशिक्षा प्रदान करनी चाहिए ।

४. पटाखे फोडने से होनेवाले हानिकारक परिणाम

४ अ. शारीरिक चोट पहुंचना : पटाखे फोडने से अनेक व्यक्तियों को शारीरिक चोट पहुंचती हैं । आखों को चोट पहुंचना अथवा जलना इस प्रकार की अनेक घटनाएं घटती हैं । इससे अन्यों को दुःख होता हैं । तो क्या अन्योंको दुःख देकर हम दीपावली मनाएं ? कदापि नहीं, यह घोर पाप है ।

४ आ. छोटे बच्चे एवं वृद्ध व्यक्तियों को कष्ट होना : बडे पटाखे फोडने से होनेवाले कर्णकर्कश / कर्णविदारक ध्वनि के कारण छोटे बच्चे डर जाते हैं । उनके मनपर हानिकारक परिणाम होते हैं । वृद्ध व्यक्तियों को भी इस ध्वनि से कष्ट होता है । क्या इस प्रकार अन्यों को कष्ट देकर हम दीपावली मनाएं ? हरएक में ईश्वर हैं । ऐसे आचरणद्वारा हम हर एकमें विद्यमान ईश्वरीय तत्त्व को कष्ट देते हैं । अतः इस बात का विचार कर इस कुप्रथा को रोककर हम दीपावली मना सकते हैं ।

४ इ. पटाखों के धुएं के कारण श्वास लेने में कष्ट होना : पटाखों के धुएं के कारण श्वास लेने में कष्ट होता है । साथ ही जिन्हें श्वास लेने में कष्ट है, ऐसे लोगों के कष्ट में वृद्धि होती है तथा ऐसे लोग इस कालावधि में ऐसे स्थानसे कहीं अन्य रहने के लिए चले जाते हैं । अतः उन्हें कष्ट न हों; इसलिए हमें ये सब रोकना ही होगा ।

४ ई. पर्यावरणपर होनेवाले प्रतिकूल परिणाम ! : हम ‘पर्यावरण’ विषय का अभ्यास करते हैं । हरएक को पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए, यह हमें ज्ञात है । दीपावली की कालावधि में वातावरण में प्राणवायु की मात्रा अल्प होकर ‘कार्बन-डाइ-ऑक्साईड’की मात्रा बढती है । अतएव लोगों को शुद्ध हवा नहीं मिलती एवं पर्यावरण का ह्रास होता है । तो क्या हम ‘पर्यावरण’ विषय केवल गुण प्राप्त करने हेतु ही सीखेंगे ?

४ उ. धननाश होना : आज हमारे देश की जनता भ्रष्टाचार, कंगाली जैसी अनेक बातों से त्रस्त हैं । ऐसे समय अनुचित बातों के लिए क्या हम अपना धन व्यय करेंगे ? पटाखे फोडना, अर्थात हमारा ही धन जलाना है । यह धन हम हमारी शिक्षा के लिए व्यय कर सकते हैं । तो मित्रो, इस दीपावली से ‘पटाखे खरीद कर राष्ट्र की संपत्ति की हानि नहीं करेंगे’, आइए हम ऐसा निश्चय करें ।

४ ऊ. पटाखों के धुएं के कारण वातावरण की सात्त्विकता नष्ट होकर रज-तम की मात्रा में वृद्धि होना :पटाखों के धुएं के कारण वातावरण की सात्त्विकता नष्ट होकर रज-तम की मात्रा में वृद्धि होती है । अतएव वातावरण से ईश्वर का चैतन्य नष्ट होता है । त्योहार के माध्यम से हमें सत्गुणों को बढाने का प्रयत्न करना चाहिए; समाज की सभी समस्याओं का मूल कारण रज-तम का प्राबल्य है, । हम इसे रोकने का निश्चय करेंगे । तो मित्रो, इस दीपावली को ‘पटाखे नहीं फोडेंगे’, ऐसा निश्चय करेंगे ।

५. लडकियों, चित्रविचित्र रंगोली बनाने की अपेक्षा शास्त्रानुसार रंगोली बनाएं !

दीपावली में हम घरों के सामने रंगोली बनाते हैं । रंगोली के माध्यम से हम देवता का आवाहन करते हैं । शास्त्रानुसार रंगोली किस प्रकार बना सकते हैं, यह सनातन के `सात्त्विक रंगोलियां’ नामक ग्रंथ में उल्लेखित है । हम शास्त्र से अपरिचित हैं, अतएव आधुनिक प्रथा अथवा परिवर्तित रूप में लडकियां चित्रविचित्र रंगोली बनाती हैं, इसे हमें रोकना ही चाहिए । लडकियों, हम इस दीपावली में शास्त्रानुसार रंगोली बनाने का निश्चय करेंगे ।

६. दीपावली में बिजली का प्रकाश अथवा तमोगुणी मोमबत्ती का उपयोग करने की अपेक्षा तेल के दीए का उपयोग करेंगे !

दीपावली में वातावरण में ईश्वरीय चैतन्य अधिक मात्रा में होता है । तेल के दीए के माध्यम से हमारे घरों में उस चैतन्य का प्रक्षेपण होता है एवं हमारे घर का वातावरण आनंदी होता है । तेल का दीया रज-तम का नाश करता है एवं सत्त्वगुण की वृद्धि करता है, तो बिजली के प्रकाश एवं मोमबत्तीद्वारा वातावरण में रज-तम की वृद्धि होती है । ऐसा नहीं हो; अतः बच्चो, दीवाली में तेल का दीया जलाएं तथा बिजली के प्रकाश से घर को प्रकाशित ना करें !

७. बच्चो, भैयादूज के दिन बहन को हिंदु संस्कृतिनुसार वस्त्रालंकार प्रदान करें !

भैयादूज के दिन बहन भाई का औक्षण करती है, तब बहन को वस्त्रालंकार प्रदान करते समय भाई जीन्स पैंट एवं टी-शर्ट ऐसे ईसाईयों की वेशभूषावाले वस्त्र देते हैं । ऐसी भेंट देना, अर्थात अपनी बहन को हिंदु संस्कृति से दूर लेकर जाने के समान ही है । अतः हम अपनी बहन को घाघरा-चोली(परकर पोलके), सलवार-कमीज, साडी जैसे सात्त्विक वस्त्र प्रदान कर हिंदु संस्कृति की रक्षा करेंगे !

विद्यार्थी मित्रो, अब हमें हर त्योहार के पीछे क्या शास्त्र है, यह ज्ञात करना आवश्यक है । हमें प्रत्येक त्योहार शास्त्रानुसार मनाना चाहिए । साथ ही हम धर्म एवं संस्कृति के विषय में जानकारी प्राप्त कर राष्ट्र एवं संस्कृति की रक्षा हेतु तत्पर रहें !

– श्री. राजेंद्र पावसकर (गुरुजी), पनवेल