गणपति को तुलसी न चढ़ाने का कारण
पौराणिक कारण : ‘एक अतिसुंदर अप्सरा को उत्तम पति की इच्छा थी । इसके लिए वह सदा उपवास, जप, व्रत, तीर्थयात्रा आदि करती थी । एक बार जब उसने ध्यानमग्न गणपति को देखा, तो उसे वे भा गए । उन्हें ध्यान से जगाने हेतु उसने पुकारा, ‘‘हे एकदंत, हे लंबोदर, हे वक्रतुंड !’’ गणपति का ध्यान भंग हुआ । आंखें खोलीं, तो अप्सरा दिखाई दी । उन्होंने उससे पूछा, ‘‘हे माता, आप मेरा ध्यान क्यों भंग कर रही हैं ?’’ उसने उत्तर दिया, ‘‘आप मुझे अच्छे लगे; मैं आपसे विवाह करना चाहती हूं ।’’ गणपति ने कहा, ‘‘मैं कभी विवाह नहीं करूंगा, मोहपाश में नहीं पड़ूंगा ।’ इसपर अप्सराने कहा, ‘‘मैं आपको श्राप देती हूं । आप विवाह करेंगे ही ।’’ गणपतिने उसे प्रतिश्राप दिया, ‘‘आप पृथ्वीपर वृक्ष बन जाएंगी ।’’ अप्सरा को पश्चाताप हुआ और उसने गणपति से क्षमा मांगी । गणपतिने कहा, ‘‘माते, कृष्ण आपसे विवाह करेंगे तथा आप सुखी होंगी ।’’ वह अप्सरा आगे तुलसी बनीं । श्रीगणेशने तुलसी को कभी आश्रय नहीं दिया, इसलिए उन्हें तुलसी नहीं चढ़ाते ।’
संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ, ‘श्री गणपति ‘