जोर से हंसे भगतसिंह

भगतसिंह जेल में थे । एक दिन भगतसिंह के परिजन उनसे मिलने लाहौर गए । भगतसिंह को बैरक से बाहर लाया गया । उनके साथ पुलिस अफसर सहित कई जवान थे । भगतसिंह सदैव की तरह अपने घरवालों से मिले । उनके चेहरेपर परेशानी के लेशमात्र भी चिन्ह नहीं थे । उन्हें पूर्ण विश्वास था कि परिजनों से यह उनकी आखिरी मुलाकात है । उन्होंने मां से कहा बेबेजी, दादाजी अब ज्यादा दिन तक नहीं जिएंगे । आप बंगा जाकर उनके पास ही रहना सबको धैर्य बंधाया, सांत्वना दी । अंत में मां को पास बुलाकर हंसते-हंसते मस्ती भरे स्वर में कहा, लाश लेने आप मत आना । कुलबीर को भेज देना । कहीं आप रो पडीं, तो लोग कहेंगे कि भगतसिंह की मां रो रही है । इतना कहकर वे इतनी जोर से हंसे कि जेल अधिकारी उन्हें फटी आंखों से देखते रह गए ।

संदर्भ : हिंदुत्व शंखनाद

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