एक बार शिवजी क्रोधवश कैलाश पर्वत एवं गौरी को छोडकर एक घनघोर जंगल में आकर रहने लगे तथा वहीं समाधिस्थ हो गए । गौरी ने बहुत ढूंढा; परंतु शिवजी नहीं मिले । अचानक नारदमुनि वहां आए । गौरी की व्यथा सुनकर उन्होंने अंतज्र्ञान से शिवजी को ढूंढा तथा उनके बैठने का स्थान गौरी को बताया । गौरी शिवजी के सामने भीलनी के वेश में पहुंची तथा उन्होंने वहां संगीतप्रधान नृत्य प्रारंभ किया । उस ध्वनि से शिवजी की समाधी टूटी तथा उन्होंने स्मित करते हुए गौरी से पूछा, ‘‘शाबरी, तुमने मुझे दिव्य समाधी से जागृत क्यों किया ?’’ उस समय शाबरी बोली, ‘‘आप मुझे छोडकर एक वर्षतक समाधी की अवस्था में किस प्रकार रहे, मुझे यह रहस्य जानना है ।’’ शिवजी बोले, ‘‘बताऊंगा; परंतु अभी यहां नहीं । जहां मानव की बस्ती न हो तथा जहां यह रहस्य कोई नहीं सुनेगा, ऐसे स्थानपर मैं तुम्हें बताऊंगा ।’’ कुछ दिन उपरांत गौरी ने शिवजी को उस बात का स्मरण करवाया । शिवजी गौरी को लेकर घनघोर जंगल में यमुना नदी के किनारे पहुंचे तथा समाधी का रहस्य शाबरी भाषा में बताने लगे; क्योंकि शाबरी भाषा गौरी की मातृभाषा थी । उस समय यमुना नदी की एक मछलीने ब्रह्मतेज निगल लिया था । कवि नारायण ने उस तेज में जीवरूप में प्रवेश किया तथा उसका गर्भ दिन मास से बढने लगा । शिवजीद्वारा बताया गया रहस्य मछली के गर्भ में स्थित मच्छिंद्रनाथजी ने सुना । भगवान शंकरजी ने अपने उपदेश का सारांश पार्वतीजी से पूछा । उस समय मच्छिंद्रनाथजी मछली के गर्भ से बोले, ‘सर्वत्र एक ब्रह्म ही भरा हुआ है, यही आपके उपदेश का सारांश है ।’ यह वाक्य सुनते ही शंकरजी ने ताड लिया कि, कवी नारायण मछली के गर्भ से जन्म लेंगे । वे बोले, ‘‘मच्छिंद्रजी, आप जब भविष्यमें बद्रिकाश्रम आएंगे, तब इसी मंत्र का उपदेश मैं भगवान दत्तात्रेय के मुख से आपको करवाऊंगा ।’’ मच्छिंद्रनाथजी को आशीर्वाद देते हुए उन्होंने हठयोग का उपदेश दिया तथा जीव ब्रह्म की सेवा करने हेतु कहा । तत्पश्चात पूर्णमास होते ही मछली के उदर से एक तेजस्वी बालक का जन्म हुआ ।