जयपुर में स्वामी विवेकानंद पाणिनी का संस्कृत व्याकरण सीखने हेतु एक प्रसिद्ध संस्कृत पंडित के यहां जाते थे । पंडितजी के अनेक प्रकार से पहला सूत्र समझानेपर भी उन्हें समझ में नहीं आ रहा था । तीन दिन निरंतर प्रयत्न करने के उपरांत पंडितजी बोले, “इतने प्रयत्न के पश्चात भी मैं आपको एक भी सूत्र नहीं समझा सका । इसी कारण मुझसे सीखने से आपको कुछ भी लाभ नहीं होगा, मुझे ऐसा लगता है।” पंडितजी के वचन सुनकर विवेकानंद को बहुत बुरा लगा । इस सूत्र का अर्थ जब तक मुझे समझ में नहीं आता, तब तक खाना-पीना सब बंद! ऐसा उन्होंने दृढ निश्चय किया । उन्होंने एकाग्र चित्त होकर उस सूत्र का अर्थ समझ लिया । उसके उपरांत वे पंडितजी के पास गए । उनसे सूत्रों का सही एवं सहज स्पष्टीकरण सुनकर पंडितजी को भी आश्चर्य हुआ ।
बालमित्रों, `करने से ही सब कुछ होता है, अतः पहले करना चाहिए । ’यह कहावत आपने सुनी होगी । दृढ निश्चय करने से कोई भी कार्य असंभव नहीं होता ।