संत वासुदेवानंद सरस्वती श्री टेंब्येस्वामी के नाम से भी पहचाने जाते थे । उनका उपनाम वासुदेव,पिताजी का गणेशभट्ट, एवं माताजी का रमाबाई तथा दादाजी का नाम हरिभट्ट था । (लुनर) चंद्र दिनदर्शिकानुसार उनका जन्म सूर्योदय के पश्चात श्रावण वद्य ५, शालिवाहन शक १७७६, २६ घटिकापर हुआ था ।
१८७५ में गोवा के निकट सावंतवाडी निवासी बाबाजीपंत गोडेजी की कन्या अन्नपूर्णाबाई, वय २१ वर्ष, से उनका विवाह हुआ । बचपन से ही वे संस्कृत भाषा के जानकार तथा उत्तम विद्वान थे । उनकी कीर्ति हर साल बढती ही गई । नरसोबा वाडी में भगवान दत्तात्रेय का एक प्रसिद्ध मंदिर है । इस क्षेत्र का भ्रमण करने के पश्चात वे वासुदेवानंद सरस्वती के नाम से पहचाने जाने लगे । जहां ५०० वर्ष पूर्व श्री नरसिंह सरस्वतीजीने १२ वर्षोंतक निवास किया, श्री वासुदेवानंद सरस्वतीजीने वहींपर “दत्त माहात्म्य” ग्रंथलिखा । १८९१ में पत्नी की मृत्यु के पश्चात केवल १३ दिन बाद ही वे संन्यासी बनगए । उनके गुरु श्रीमंत गोविंदस्वामीजीने उन्हें संन्यास की दीक्षा दी ।
वर्ष १९१४ ( ज्येष्ठ वद्य अमावास्या ) में वे परमात्मा में विलीन हो गए । नर्मदा के तटपर उनकी अंतिम बिदाई की गई ।