प्रभु श्रीराम ने रावण की कैद से सीता को छुडाने हेतु लंका की ओर प्रस्थान किया । रास्ते में बडा सागर था । उसे पार कर के लंका पहुंचना था । किंतु सागर पार कर के लंका कैसे जाएं ? अत: वानरसेना तथा हनुमानजी ने तय किया कि हम सागर में पत्थर डालकर सेतु बनाएंगे तथा उसपर चल के लंका पहुंचेंगे । हर एक बंदर पत्थरपर प्रभु श्रीराम का नामजप लिखकर नामस्मरण करते हुए सागर में पत्थर डालने लगा । तो एक आश्चर्य की बात हो गई ! वे सारे पत्थर पानीपर तैरने लगे तथा थोडे ही दिनों में सेतु सिद्ध हो गया ।
सारे वानर जब सेतु बांध रहे थे, उस समय उन्हें एक छोटी गिलहरी ने देखा । उसने मन में कहा, `श्रीराम तो साक्षात भगवान हैं । उनके कार्य हेतु ये बंदर सेतु बांध रहे हैं । मैं भी उनकी सहायता करुंगी । यह तो प्रभु श्रीराम की सेवा है ।’ वहां पास ही रेत का ढेर था, गिलहरी ढेरपर गई तथा अपने छोटे-छोटे हाथों में छोटे पत्थर एवं रेत लेकर सागर में डालने लगी । यह देखकर बंदरों को बडा आश्चर्य हुआ । एक बंदर ने उससे कहा,`ओ नन्हीं जान, तू एक एक कण रेत लाकर डाल रही है । क्या उससे सेतु बंध जाएगा ?’ तब गिलहरी ने कहा,`बंदर भैया, मैं बडे पत्थर नहीं ले जा सकती । तुम लोगों जैसा सेतु नहीं बांध सकती; किंतु मैं मेरा “खारी का हिस्सा’’ तो उठाती हूं । मुझसे प्रभु श्रीराम की सेवा होने दें । भले यह छोटी ही क्यों न हो ’’, ऐसा कहकर गिलहरी दुबारा रेत लेकर सागर में डालने की सोवा करने लगी । बहुत देर तक ऐसा करनेपर वह थक गई; किंतु बिना रुके यह चक्कर लगा रही थी । पता है, वह मन में क्या कह रही थी ? वह कह रही थी, `जबतक मेरे शरीर में शक्ति है, तबतक मैं प्रभु श्रीराम की सेवा करती रहुंगी ।’ जब वह पुन: रेत लेकर सागर की ओर जा रही थी, तो किसी ने बडे प्रेमसे उसकी ओर देखा; क्या आप बता सकते हैं, वे कौन थे ? साक्षात प्रभु श्रीराम ने उसे देखा तथा गिलहरी को हाथों में उठा लिया । प्रभु श्रीराम ने उससे कहा, `गिलहरी दीदी भले ही तुम छोटी हो, किंतु तुमने बहुत अच्छी सेवा की है । मैं तुमपर प्रसन्न हूं ।’ प्रभु श्रीराम ने अपने दाहिने हाथ की तीन उंगलियों से गिलहरी के सिरपर प्रेम से हाथ फेरा । तब गिलहरी की पीठपर भगवान की उंगलियों के निशान प्रकट हो गए । देखो, हमें गिलहरी की पीठपर निशान दिखाई देते हैं ना ! प्रभु श्रीराम ने गिलहरी से कहा, `जो कोई तुम्हारे जैसी सेवा करेगा, उसपर हमेशा मेरी कृपा बनी रहेगी । उसे किसी बात का अभाव नहीं रहेगा ।’ देखो, भगवान की कृपा होनेसे, हमे कभी किसी बात का अभाव नहीं रहता । तो हमपर भगवान की कृपा कब होगी ? गिलहरीपर भगवान की कृपा क्यों हुई ?
बच्चो, सेवा का अर्थ है, भगवान को जो अच्छा लगे वह काम करना; भगवान के कार्य में सम्मिलित होना, यही भगवान की सेवा है । यदि हम काम में मां का हाथ बटाएं, तो मां को अच्छा लगेगा या नहीं ? तब मां हमें मिठाई देगी तथा हमें प्यार करेगी । उसी प्रकार हमने भगवान की सेवा की, तो भगवान भी हमें प्यार करेंगे ।