१. साधू-संतों के विषय में अनादर, घृणा रखनेवाले सुभेदार जलालखान का जयरामस्वामी के प्रवचन में जाना !
एक बार महाराष्ट्र के मिरज स्थित सुभेदार जलालखान घूमते-घूमते जयरामस्वामी के प्रवचन के स्थानपर पहुंच गए । साधू-संतों के विषय में उसके मन में अनादर था । वहां पहुंचनेपर उसने सोचा, देखे तो सही ये क्या बोलता है !
२.‘ जो संतों के दिखाए मार्ग से जाता है, वह तो भगवंत की प्राप्ति कर सकता है, ’जयरामस्वामी का यह वचन सुनकर जलालखान ने उनकी परीक्षा लेने का निश्चय किया तथा श्रीराम का दर्शन करवाने हेतु कहा !
जयराम स्वामीजी ने सत्संग में बोलते हुए कहा, ‘जो संतों के मार्ग से जाता है, वह भगवंत की प्राप्ति कर सकता है ।’ ( इस वचन का भावार्थ है, जो संतों के कहने के अनुसार आचरण करता है, वह भगवंत की प्राप्ति कर सकता है । )
यह सुननेपर जलालखान के मन में जयरामस्वामी को कलंकित करने का षड्यंत्र निर्माण हुआ । दूसरे दिन उसने उन्हें बुलाकर कहा, ‘तुमने कल सत्संग में कहा था कि, जो संतों के मार्ग से जाता है, वह भगवंत की प्राप्ति कर सकता है । मैं तुम्हारे मार्गपर चलूंगा । तुम तुम्हारे इष्टदेव श्रीराम से मेरी भेंट करवाओ तथा उनके दर्शन करवाओ । जाओ इसकी व्यवस्था करो । कल तक का समय देता हूं, नहीं तो समझ लेना । जाओ ! ’
३. जयरामस्वामी ने समर्थ रामदासस्वामी की सहायता मांगना !
‘समझ लेना’का अर्थ है कठोर दंड मिलेगा । जयरामस्वामीजी थोडा घबराए । वे नदी तटपर गए । वहां समर्थ रामदासस्वामी स्नान हेतु आए थे । समर्थ रामदासस्वामी स्नान कर नदी से बाहर आए । जयरामस्वामीजी ने उन्हें पूर्ण घटना सुनाई । तब दोनों में आगे दिया संभाषण हुआ ।
समर्थ रामदासस्वामी (थोडा क्रोधित होकर ) : मैं क्या करूं ? ऐसे श्रद्धाभंजक तथा निंदक लोगों से सावधानी से बात करनी चाहिए ।
जयराम स्वामी : महाराज, अब इस बलवान, ढीठ से पाला पडा है; इससे केवल आप ही मुझे बचा सकते है ।
समर्थ रामदासस्वामी : अच्छा ठीक है । जलालखान से कहना कि, संत सुबह उनका पूजा-पाठ, कर निकलेंगे । तब तुम उनके पीछे पीछे चलना । जिस मार्ग से हम जाएंगे, यदि उसी मार्ग से तुम आओगे, तो ही श्रीराम से तुम्हारी भेंट करवाएंगे ।
जलालखान को वह संदेशा भेजा गया । खान ने सोचा, दर्शन कैसे कराएंगे देखता हूं, । यदि नहीं करवाया, तो एक नहीं, दोनों संतों की खैर नहीं ।
४. समर्थ रामदासस्वामीं ने खान को उनके पीछे -पीछे आने को कहा,‘ लघिमा ’सिद्ध द्वारा समर्थ ने जयरामस्वामी को लेकर सूक्ष्म-रूप से किले के छोटे छिद्र से किले में प्रवेश किया;किंतु जलालखान उस मार्ग से प्रवेश नहीं कर सका ।
जलालखान आया । समर्थने उसे पीछे-पीछे आनेको कहा । सभी लोग चलते चलते मिरज किलेके पास पहुंच गए । किलेके भीतरसे गोलीबारी करने हेतु जो छोटे छोटे छिद्र बनाए जाते हैं, उनमेंसे एक छिद्रकी ओर देखकरसमर्थने ‘लघिमा’ सिद्धीका उपयोग किया । संकल्प कर समर्थ एकदम छोटे बन गए तथा उस छिद्रसे किलेमें गए । जयरामस्वामीजीको भी वे संकल्पके बलपर ले गए । फिर समर्थने कहा, ‘जलालखान, जिस मार्गसे हम आए, उसी मार्गसे तुम भी आओ । श्रीराम यहीं खडे हैं । आओ, हम तुम्हें दिखाते हैं । ’
५. आधिदैविक तथा आध्यात्मिक बल प्राप्त संतों का श्रेष्ठत्व खान की समझ में आना तथा उसने शरण जाकर क्षमा मांगना ।
जलालखान की गर्दन लज्जावश नीचे झुक गई । देहबुद्धी में जीनेवाला, अहंकारी तथा आधिभौतिक बल को ही सबकुछ माननेवाला जलालखान उस छिद्र से भला कैसे जा पाता ? महापुरुषों के पास आधिदैविक तथा आध्यात्मिक सत्ताबल होता है । आधिभौतिकवालों का बल वहां किस काम का ! उसने समर्थ से क्षमा मांगी तथा वचन दिया कि, अबसे आगे मैं किसी भी हिंदू साधू के सत्संग में कहे जानेवाले संत-वचनों का अनुचित अर्थ लगाकर उन्हें कष्ट देने का दुःसाहस नहीं करूंगा ।
संदर्भ : ऋषीप्रसाद, फेब्रुवारी २०१२