एक बार संत गोंदवलेकर महाराजजी अपने गुरुदेव संत तुकामाई के साथा नदी के तटपर गए थे । वहां कुछ बच्चे रेत में खेल रहे थे । उन्हें देखकर तुकामाई महाराज ने अपने शिष्य प.पू. (संत) गोंदवलेकर महाराजजी को एक गहरा गड्ढा बनाने के लिए कहा । उनकी आज्ञानुसार महाराज ने गड्ढा बनाया । तुकामाई ने महाराजजी को खेलते हुए बच्चों को गड्ढे में डालने एवं गड्ढे का मुंह बंद करने के लिए कहा । महाराजजी ने उनकी आज्ञा का पालन किया । उसके उपरांत तुकामाई ने महाराजजी से कहा, ‘‘यदि तुमसे कोई कुछ पूछे, तो कुछ न बताना तथा कुछ न कहना ।’’
संध्या का समय हो गया । उस समयतक बच्चों के घर न लौटने से उनके माता-पिता उन्हें ढूंढते हुए नदी के तटपर आ पहुंचे । वहां एक पेड के नीचे संत तुकामाई को बैठे देख उन लोगोने उनसे बच्चों के विषय में पुछा । उन्होंने कहा, ‘‘वह देखो, वहां सामने बैठे लडके ने गड्ढा बनाकर आपके बच्चों को उसमें डाला है, यह हमने स्वयं देखा है । देखो, अब कैसे समाधि लगाकर बैठा है ! उससे बच्चों के विषय में पूछिए । यदि वह शांत रहा तो उसकी यथेच्छ पिटाई करें ! उसे बाजू से हटाकर रेत निकालकर देखें, वहां निश्चित रूप से आपको अपने बच्चे मिलेंगे ।’’
उन माता-पिताओं ने तुकामाई ने बताए अनुसार किया । वहां गड्ढे में अचेतन अवस्था में बच्चों को देख वे गोंदवलेकर महाराज को पुन: मारने लगे । तुकामाईद्वारा अपने कमंडलू से पानी छिडकनेपर बच्चे जागृत अवस्था में आ गए एवं जाकर अपने माता-पिता से लिपट गए । उनके माता-पिता प्रसन्न होकर बच्चों के साथ घर लौट गए ।
यहां तुकामाई ने महाराज को अपनी बाहु में लिया एवं उन्हें अनेक आशीर्वाद देकर कहा, ‘‘भगवान तुम्हें इसका फल अवश्य देंगे !’’
तात्पर्य : हमें संत गोंदवलेकर महाराज के आज्ञापालन का अनुकरण करना चाहिए । उन्होंने ‘क्यों करूं ?’ ऐसे प्रश्न पूछे बिना गुरु की आज्ञा का पूर्णतया पालन किया । इसलिए उन्हें उनके गुरु के आशीर्वाद मिले तथा उनपर प्रभु श्रीराम की अखंड कृपा हुई ।