संत तुकाराम महाराजजी की कीर्ति एवं लोकप्रियता दो विरोधी संन्यासियों को असहनीय हो रही थी । वे तुकोबा का अत्यंत द्वेष करते थे । उन्होंने पुणे नगरके मोकाशी (अधिकारी) दादोजी कोंडदेव से परिवाद किया कि ‘देहू गांव के तुकाराम नामक व्यक्ति ने सनातन धर्म का सर्वनाश करना प्रारंभ कर दिया है ! वह लोगों को कर्मकांड से परावृत कर भक्तिमार्गपर ला रहा है । उसकी वाणी से मोहित होकर उसके शूद्र होते हुए भी विरोधी उसे प्रणाम कर रहे हैं । उसने वैदिक धर्म की अवहेलना करना प्रारंभ किया है । उससे भेंट कर आप उसे योग्य दंड दें ।’
विरोधियों के बताने के अनुसार दादोजी ने तुकाराम महाराज को अपने दुवर्तन के विषय में पूछने के लिए पुणे बुलवाया । उनकी आज्ञा को प्रथम प्राधान्य देकर वे पुणे जाने के लिए सिद्ध हो गए । तुकोबाराय ने पुणे नगर के बाहर मुला-मुठा नदियों के संगमपर विश्राम किया । उस स्थानपर, उनके भजन के लिए बडी संख्या में पुणेवासी उपस्थित हुए । समीप के गांव के अन्य लोग भी तुकोबाराय के भजन-कीर्तन का लाभ उठाने के लिए संगमपर भीड करने लगे । वह स्थान किसी यात्रा के समान लगने लगा । उस समय दादोजी कोंडदेव भी जिज्ञासा से वहां देखने गए तथा संत तुकोबा के भजन में तल्लीन हो गए ।
तुकोबाजी की मधुर वाणी से प्रभावित होकर उन्होंने सम्मानपूर्वक तुकोबाजी को नगर में आने का आमंत्रण दिया । दो सहस्त्र ब्राह्मणों के भोजन का आयोजन कर तुकोबाजी का (यथायोग्य) सम्मान किया गया । दादोजी का यह कृत्य उन दो विरोधियों को अनुचित लगा । वे बोले, ‘‘हमने आपको तुकाराम को दंड देने के लिए कहा था । इसके विपरीत आप उनका सम्मान कर रहेहो ! आपका उद्देश्य क्या है ?’’ उनका प्रश्न सुन दादोजी कोंडदेव ने कहा, ‘‘आप तुकोबा से तत्वज्ञान का तर्क-संवाद करें । यदि आपकेद्वारा वे हार गए तो हम गधेपर बिठाकर उनकी यात्रा निकालेंगे । और हां; ध्यान में रखिए, यदि आप हार गए तो आपको भी क्षमा नहीं की जाएगी !’’ उन दो विरोधियों ने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया ।
विरोधी तुकोबाराय के निवास स्थानपर गए । उस समय तुकोबा अपने कीर्तन-भजन में तल्लीन थे । इसलिए दो विरोधियों को शांत बैठना पडा । तुकाराम महाराज के हरिनाम घोष से समस्त भक्तगण डोलने लगे । तभी विरोधियों ने ऐसा कुछ देखा जिससे वे दंग रह गए । उन्हें संत तुकाराम महाराज में चतुर्भुज (चार हाथ) पांडुरंग का (श्रीकृष्ण का) दर्शन हुआ ! उनसे तर्क-संवाद करने आए वे दो विरोधी आश्चर्य में डूब गए । उन्हें अपनी चूक स्वीकार हुई । उन्हें निश्चिती हुई कि तुकोबा स्वयं श्रीविष्णु के अवतार हैं । उन्होंने तुकोबाजी के पैर छू लिए । दादोजी ने गधेपर बिठाकर विरोधियों की यात्रा निकालने की संपूर्ण सिद्धता कर ली थी उनके शीष की पगडी भी निकाल दी गई; परंतु संत तुकारामजी ने बीच में आकर दादोजी से विनती कर उन विरोधियों को क्षमा कर दिया ।
सीख : संतों के साथ अनुचित वर्तन करनेपर भी वे क्षमा करते हैं ।