मन किसान है । हमारा शरीर एक सुंदर खेत है । ईश्वर का नाम इस खेत का बीज है । प्रेम से ही ये बीज उगते हैं, फूलते तथा फलते हैं । इस प्रकार अपने खेत से मैं इतनी फसल निकालूंगा कि मेरे परिजनों को भरपूर होगा ।” ये वाक्य गुरुनानकजी के हैं । गुरुनानक जी सिक्ख पंथ के संस्थापक हैं ।
पंजाब के तलवडे गांव में कालू नाम का एक किसान था । उसको एक बेटा हुआ । उसका नाम नानक रखा गया । नानक बचपन से ही धार्मिक वृत्ति का था । नानक थोडा बडा हुआ तो उसके पिताने उसे पाठशाला भेजा । पाठशाला की छुट्टी होनेपर वह गाय-ढोरों को जंगल में चराने ले जाता था । वहां जाकर वह ईश्वर का भजन करता था ।
एक दिन वह ईश्वर को प्रार्थना कर रहा था उस समय एक वृद्ध किसान वहां आया । वह नानक से बोला, ‘‘मुझे यात्रापर जाना है । मैं चार दिनों में लौटूंगा । तबतक मेरे खेतों की रक्षा करो । मैं तुम्हे बोरी भरकर गेहूं दूंगा । मेरे खेत में दस बोरी गेहूं उगता है ।” नानक ने उन्हें हां कहा । वह किसान आनंद से यात्रा के लिए चला गया । नानक उसके खेत की मचानपर बैठे । खेत में गेहूं से भरी बालियां आई थीं । देखते ही देखते चिडियों के झुंड के झुंड वहां आए । ये चिडियां दाने खाने लगीं । तब नानक ने ईश्वर को प्रार्थना की, ‘‘हे ईश्वर, किसान के दानों की रक्षा करें । चिडियों को आप अपने दाने खिलाएं ।” इस प्रकार चार दिनोंतक चलता रहा । चिडिया प्रतिदिन दाने खा रही थीं । चार दिनों के पश्चात किसान लौट आया । खेत में फसलपर चिडियों का झुंड देखकर वह क्रोधित हुआ । तब नानक ने कहा, ‘‘किसानदादा, क्रोधित न हों । आप फसल काटें तथा दाने नाप लें । मैंने ईश्वर के दाने चिडियों को दिए हैं । आपके दाने शेष हैं ।” यह सुनकर किसान ने फसल काटी । दाने निकालकर उन्हें नापकर देखा । दानों की ग्यारह बोरियां भरीं । ईश्वर की यह कृपा देखकर किसान ने नानकजी के चरण पकड लिए ।
बच्चो, प्रार्थना का महत्व आपकी समझमें आ ही गया होगा । मन से आर्तता से प्रार्थना करने से ईश्वर दौडकर आते हैं; इसलिए निरंतर कुलदेवता का नामस्मरण, प्रार्थना एवं कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए । प्रार्थना में बहुत शक्ति है ।