बालमित्रो, एक बार एक साधु तीर्थयात्रा करते हुए एक गांव में पहुंचे। गांव के बाहर हनुमानजी का एक देवालय था, वहींपर रहने लगे। एक-दो दिन बीतने पर धीरे-धीरे गांव के लोग साधु महाराज के पास आने लगे । प्रतिदिन आने-जाने के कारण गांव के लोगों से उनकी आत्मीयता हो गयी। लोग उनसे अपनी आध्यात्मिक शंकाएं पूछने लगे। घरेलू अडचनें बताने लगे । वे भी सब को उचित उत्तर देकर उनका समाधान करने लगे । कभी-कभी वे किसी विषय पर प्रवचन भी करते ।
एक दिन गांव के लोग जब एकत्र हुए, तब साधुने उनसे कहा, ‘‘देखो, संसार में कभी किसी को पूरा सुख नहीं मिला है । इसलिए, प्रत्येक परिस्थिति में सन्तुष्ट रहने का प्रयास करना चाहिए तथा ईश्वर का नाम जपना चाहिए, ईश्वर की निष्काम सेवा करनी चाहिए । इसी में खरा आनन्द है ।” उनकी यह बात सुनकर साठ वर्ष का एक गृहस्थ बहुत क्रोधित होकर कहता है, ‘‘संसार में सन्तुष्ट रहें, ऐसा कहने में क्या जाता है; परन्तु ऐसा संभव है क्या ? मुझे ही देखिए, मेरा एक बेटा बारह वर्ष का है, उसका उपनयन अभी नहीं हुआ है । दूसरा बेटा अठारह वर्ष का है, उसकी शिक्षा अधूरी है । सबसे बडी बेटी बीस वर्ष की हो गयी है, फिर भी अविवाहित है । बेटोंकी चिन्ता में पत्नी सूख रही है । उसे औषध देनी पडती है । इन सबके लिए मेरा वेतन अल्प पडता है । ऐसी परिस्थिति में चिन्ता न करूं, तो क्या करूं ?”
साधु महाराज ने उस व्यक्ति का कहा शान्तिसे सुन लिया । तत्पश्चात मुसकराते हुए बोले, ‘‘चिन्ता करने से सांसारिक प्रश्न हल होंगे क्या । आजतक आपने अनेक बार चिन्ता की है । तब, केवल चिन्ता करने से आपकी कोई समस्या हल नहीं हुई है न ? यह ज्ञात होनेपर भी, हमें ऐसा नहीं लगता कि अभी तक जितनी चिन्ता की है, वह पर्याप्त है । चिन्ता-पर-चिन्ता करते ही जा रहे हैं । चिन्ता करने की अपेक्षा यदि मन में सन्तोष धारण किया होता एवं चित्तको ईश्वर के नामपर केन्द्रित किया होता, तो समस्या का समाधान मिलने की सम्भावना अधिक होती । ईश्वर सर्वशक्तिमान हैं, उनके लिए सबकुछ सम्भव है । इसलिए, अधिकाधिक समय ईश्वर के स्मरण में व्यतीत करना चाहिए ।” यह सुनकर उस व्यक्ति को अपनी चूक समझमें आई ।
बालको, यदि मन को सन्तुष्ट रखना है, तो मन को नामपर केन्द्रित करें । चिन्ता करने से किसी प्रश्न का हल नहीं निकलता । अतः, अधिकाधिक समय नामजप में व्यतीत करें