प्रभु श्रीराम ने स्वतन्त्र शिक्षा देकर घरघर में श्रीराम निर्माण किए थे !
रामराज्य में आर्थिक योजना के साथ ही उच्च राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण किया गया था । तत्कालिन लोक निर्लाेभी, सत्यवादी, अलंपट, आाqस्तक और सक्रिय थे; क्रियाशून्य नहीं थे । जब बेकारभत्ता मिलता है तब मनुष्य क्रियाशून्य बनता है । तत्कालिन लोग स्वतन्त्र थे; कारण शिक्षा स्वतन्त्र थी । शिक्षा राज्याश्रित अथवा वित्ताश्रित नहीं थी । शिक्षार्थी और शिक्षा प्रदान करनेवाले दोनों यदि पराधीन (गुलाम) होंगे, तो उस शिक्षा से क्या निर्माण होगा ? जो बोया जाता है वही उपजता है । अन्य कुछ नहीं उपजेगा ।
प्रभु श्रीरामने स्वतन्त्र शिक्षा देकर घरघर में श्रीराम निर्माण किए थे । जहां शिक्षा राज्याश्रित अथवा वित्ताश्रित होती है, वहां कभी भी स्वतन्त्र विचारधारा नहीं होगी; राष्ट्रीय चरित्र का पुनरुत्थान नहीं हो सकेगा !
जनता को विशेष शिक्षा प्राप्त होने से ‘राष्ट्रीय चरित्र’ निर्माण हुआ !
‘मनुष्य को केवल कर्तव्य परायण ही नहीं, अपितु लोभ से दूर भी रखा गया था । हम कर्तव्य केवल उद्घोष करते है, किन्तु कर्तव्य परायण नहीं होते । इसीलिए प्रभु श्रीराम ने लोगों को विशेष शिक्षा देकर ‘राष्ट्रीय चरित्र’का निर्माण किया था ।’
समाज अपने सुख और हित की पूर्ति का प्रयास करता है । परन्तु यह वैâसे सम्भव होता है, इसका उसे भान नहीं होता । प्रभु श्रीराम को इसका सम्पूर्णरूप से भान होने के कारण उन्होंने जनता को साधना बताकर धर्माधिष्ठित विशेष शिक्षा देकर उनमें ब्राह्मतेज और क्षात्रतेज का निर्माण किया । जिससे ‘राष्ट्रीय चरित्र’का निर्माण हुआ । – प.पू. पांडे महाराज, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल.
(सन्दर्भ : व्यासविचार, नवम स्कन्ध)